________________
चतुर्थ अध्याय ।
३८७ ९-श्वेतमूत्रता-इस रोग में पेशाब श्वेत (सफेद) उतरता है। १०-श्वेतांगवर्णता-इस रोग में शरीर का रंग सफेद हो जाता है। ११-उप्णेच्छा-इस रोग में अति गर्म पदार्थ के खाने की इच्छा होती है। १२-तिक्तकामता-इस रोग में कडुई चीज़ की इच्छा होती है। १३-मलाधिक्य-इस रोग में दस्त अधिक होकर उतरता है। १४-शुक्रबाहुल्य इस रोग में वीर्य का अधिक सञ्चय होता है। १५-बहुमूत्रता-इस रोग में पेशाब बहुत आता है। १६-आलस्य-इस रोग में आलस्य बहुत आता है। १७-मन्दबुद्धित्व-इस रोग में बुद्धि मन्द हो जाती है। १८-तृति-इस रोग में थोड़ा सा खानेसेही तृप्ति हो जाती है। १९-घर्घरवाक्यता-इस रोग में आवाज़ घर्घर होकर निकलती है। २०-अचैतन्य इस रोग में चेतनता जाती रहती है।
सूचना-कफका कोप होने से शरीर में उक्त रोगोंमेंसे एक अथवा अनेक रोगों के जब लक्षण दीख पड़ें तब उन को खूब सोच समझ कर रोगों का इलाज करना चाहिये।
कफ के रोगों में जो श्वेतावलोकन तथा श्वेतविदकत्व रोग गिनाये गये हैं उनका तात्पर्य यह नहीं है कि सब वस्तुयें बर्फ के समान सफेद दीखे तथा बर्फ के समान सफेद दस्त आवें, किन्तु उन का तात्पर्य यही है कि आरोग्यता की दशा में जैसा रंग दीखता था तथा जिस रंग का दस्त आता था वैसा रंग न दीख कर तथा उस रंग का दस्त न होकर पूर्व की अपेक्षा अधिक श्वेत दीखता है तथा अधिक श्वेत. दस्त आता है।
यह चतुर्थ अध्याय का त्रिदोषज रोगवर्णन नामक ग्यारहवां प्रकरण समाप्त हुआ।
बारहवां प्रकरण रोगपरीक्षाप्रकार।
रोग की परीक्षा के आवश्यक क्रम वा प्रकार । रोग की परीक्षा के बहुत से प्रकार हैं-उन में से तीन प्रकार निमित्त शास्त्र के द्वारा माने जाते हैं, जो कि ये हैं-स्वम, शकुन और स्वरोदय, स्वप्न के द्वारा रोग की परीक्षा इस प्रकार से होती है कि-रोगी को या उस के किसी सम्बन्धी को या उस के चिकित्सक (रोगी की चिकित्सा करनेवाले) वैद्य को जो स्वप्न आवे उस का शुभाशुभ फल विचार कर रोग की परीक्षा करना, शकन के द्वारा रोग की परीक्षा इस प्रकार से होती है कि-जिस समय वैद्य को बुलाने के लिये दूत
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com