SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 397
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ अध्याय । ३८३ ४७ -अतिजृम्भा - इस रोग में वादीसे उवासी अर्थात् जँभाई बहुत आती हैं। ४८ - प्रत्युद्गार - इस रोग में वादी के कोप से डकारें बहुत आती हैं । ४९ - अन्नकूजन - इस रोग में वादी के कोप से आँतों में कूजन ( कुर २ की आवाज़ ) वार २ होती है । ५० - वातप्रवृत्ति - इस रोग में वादी के जोर से अधोवायु (अपानवायु ) बहुत निकलती है । ५१ - स्फुरण - इस रोग में वादी के जोर से आँख अथवा हाथ आदि कोई अंग फरकता है । और शिरायें भर जाती हैं । ५२ - शिरापूर्ण - इस रोग में वादी से सब नसें ५३ - कम्पवायु -- इस रोग में वायु से सब अंग ५४ - कार्य - इस रोग में वादी के कोप से शरीर प्रतिदिन ( दिन पर दिन ) दुर्बल होता जाता है। अथवा शिर काँपा करता है । ५५ - श्यामता - इस रोग में वादी से शरीर काला पड़ता जाता है । ५६ - प्रलाप – इस रोग में वादी से मनुष्य बहुत बकता और बोलता रहता है । ५७ - क्षिप्रमूत्रता - इस रोग में बादी से दम २ में ( थोड़ी २ देर में ) पेशाव उतरा करती है । ५८ - निद्रानाश - इस रोग में वादी से नींद नहीं आती है । ५९ - स्वेदनाश – इस रोग में वादी पसीने के छिद्रों (छेदों) को बन्द कर पसीने को बन्द कर देती है । ६० - दुर्बलत्व – इस रोग में वायु के कोप से शरीर की शक्ति जाती. रहती है । ६१ - बलक्षय - इस रोग में वादी के कोप से शक्ति का बिलकुल ही नाश हो जाता है । ६२ - शुक्रप्रवृत्ति - इस रोग में वादी के कोप से शुक्र (वीर्य) बहुत गिरा करता है । ६३ - शुक्रका - इस रोग में वायु धातु में मिलकर धातु को सुखा देती है ६४ - शुक्रनाश - इस रोग में वायु से धातु का बिलकुल ही नाश हो जाता है ६५ - अनवस्थितचित्तता - इस रोग में वायु मगज़ में जाकर चित्त को अस्थिर कर देती है । ६६ - काठिन्य - इस रोग में वायु के कोप से शरीर करड़ा हो जाता है । ६७ - विरसास्यता - इस रोग में वायु के कोप से मुँह में रस का स्वाद बिलकुल नहीं रहता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy