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________________ चतुर्थ अध्याय । ३७३ इस नियम के उल्लंघन करने से अर्थात् व्यभिचार से न केवल व्यावहारिक नीति का ही भंग होता है किन्तु शारीरिक नीति और आरोग्यता की भी हानि होती है इस लिये इस महाहानिकारक विषय को अवश्य छोड़ना चाहिये, इस विपत्र का यदि अच्छे प्रकार से वर्णन किया जावे तो एक ग्रन्थ बन सकता है, इस लिये संक्षेप से ही पाठकों को इस विषय को दर्शाते हैं: ---- कुछ यदि विवाहित स्त्री पुरुष ऊपर लिखी हुई बातों को लक्ष्य में रख कर उन्हीं के अनुसार वर्ताव करें तो वे नीरोगशरीरवाले और दीर्घायु हो सकते हैं, तथा सद्गुणों से युक्त सन्तति को भी उत्पन्न कर सकते हैं और विचार कर देखा जावे तो ब्रह्मचर्य के पालन करने का प्रयोजन भी यही है, आहार विहार में नियमित और अनुकूलतापूर्वक रहना ए सर्वोत्तम और परमावश्यक नियम है, तथा इसी नियम के पालन करने का नाम ब्रह्मचर्य है, ब्रह्मचर्य के विषय में एक विद्वान् अंग्रेज ने वर्णन कया है उस का निदर्शन करना आवश्यक समझ कर उस का संक्षिप्त अनुवाद: यहां लिखते हैं. उक्त विद्वान् का कथन है कि - "यह निश्चित बात है कि- ब्रह्मचर्यव्रत के नियम की अज्ञानता वा उस के उल्लंघन के कारण वीर्य का अनुचित उपयोग होने से खोटे परिणाम निकलते हैं, क्योंकि बहुत से लोग इस नियमको जानते भी हैं तो भी जान बूझ कर उलटी रीति से वर्ताव करते हैं किन्तु बहुत से लोग तो इस नियम से अत्यन्त अनभिज्ञ ही देखे जाते हैं, मनुष्य के तन और मन के साथ में सम्बन्ध रखनेवाला तथा उस के कल्याण सुख और जीवन के जय का करनेवाला ब्रह्मचर्यव्रत ही है, इस लिये इस विषय में जो कुछ विचार किया जावे अथवा दलील दी जावे वह वास्तविक है, ब्रह्मचर्यव्रतधारी अथवा ब्रह्मचारी वही गिना जा सकता है कि जो शरीरबल और सुन्दर स्त्री आदि सर्व सामग्री के उपस्थित होने पर भी शास्त्रोक्त ज्ञान से अपने मन को वश में रखता है, इच्छापूर्वक स्त्रीसंग से अत्यन्त अलग रहने के लिये जो दृढ़ निश्चय किया जाता है उसे प्रयोग ( अमल ) में लाने के लिये इच्छापूर्वक स्त्रीसंग नहीं करना चाहिये किन्तु ऋतुदान के समय प्रतिज्ञा के अनुसार स्त्रीसंग करना उचित है, इस नियम के पालन करनेवाले गृहस्थ को ब्रह्मचारी कहते हैं, इसलिये यही परम उचित कर्तव्य है कि - प्रजा ( सन्तान) के उत्पन्न करने के लिये ही स्त्रीसंग करना ठीक है, अन्यथा नहीं । ८ - मलिनता - इस में सन्देह नहीं है कि मलिनता बहुत से रोगों को उत्पन्न करती है, क्योंकि घर के भीतर की तथा आसपास की मलिनता खराब हवा को उत्पन्न करती है और उस हवा से अनेक रोगों के उत्पन्न होने की सम्भावना होती है, देखो! शरीर की मलिनता से चमड़ी के बहुत से रोग हो जाते हैं, जैसे - रूखापन, खुजली और गुमड़े आदि, इस के सिवाय मैल से चमड़ी के छेद रुक जाते हैं, छेदों के रुक जाने से पसीने का निकलना बंद हो जाता है, पसीने ३२ जै० सं० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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