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________________ ३६२ जैनसम्प्रदायशिक्षा। रोग को उत्पन्न करनेवाले समीपवर्ती कारण । रोगको उत्पश्च करनेवाले समीपवर्ती कारणों में से मुख्य कारण अठारह हैं और वे ये हैं-हवा, पानी, खुराक, कसरत, नींद, वस्त्र, विहार, मलिनता, व्यसन, विषयोग, रसविकार, जीव, चेप, ठंढ, गर्मी, मनके विकार, अकस्मात् और दवा, ये सब पृथक् २ अनेक रोगों के कारण हो जाते हैं, इन में से मुख्य सात बातें हैं जिन को अच्छे प्रकार से उपयोग में लाने से शरीर का पोषण होकर तनदुरुस्ती बनी रहती है तथा इन्हीं वस्तुओं के आवश्यकता से कम अधिक अथवा विपरीत उपयोग करने से शरीर में अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। इन अठारहों विषयोंमेंसे बहुतसे विषयोंका विवरण हम विस्तारपूर्वक पहिले भी कर चुके हैं, इसलिये यहांपर इन अठारहों विषयों का वर्णन संक्षेपसे इस प्रकारसे किया जायगा कि इनमेंसे प्रत्येक विषयसे कौन २ से रोग उत्पन्न होते हैं, इस वर्णनसे पाठक गणोंको यह बात ज्ञात हो जायगी कि शरीरको अनेक रोगोंके योग्य बनानेवाले कारण कौन २ से हैं। १-हवा-अच्छी हवा रोग को मिटाती है तथा खराब हवा रोग को उत्पन्न करती है, खराब हवा से मलेरिया अर्थात् विषम जीर्णज्वर नामक बुखार, दस्त, मरोड़ा, हैजा, कामला, आधाशीसी, शिर का दुखना ( दर्द), मंदाग्नि और अजीर्ण आदि रोग उत्पन्न होते हैं। __ बहुत ठंढी हवा से खांसी, कफ, दम, सिसकना, शोथ और सन्धिवायु आदि रोग उत्पन्न होते हैं। बहुत गर्म हवा से जलन, रूखापन, गर्मवायु, प्रमेह, प्रदर, भ्रम, अंधेरी, चक्कर, भंवर आना, वातरक्त, गलत्कुष्ठ, शील, ओरी, पिँडलियों का कटना, हैज़ा और दस्त आदि रोग उत्पन्न होते हैं। २-पानी-निर्मल (साफ) पानी के जो लाभ हैं वे पहिले लिख चुके हैं उन के लिखने की अब कोई आवश्यकता नहीं है । __ खराब पानी से-हैजा, कृमि, अनेक प्रकार का ज्वर, दस्त, कामला, अपचि, मन्दाग्नि, अजीर्ण, मरोड़ा, गलगण्ड, फीकापन और निर्बलता आदि अनेक रोग उत्पन्न होते हैं। _अधिक खारवाले पानी से-पथरी, अजीर्ण, मन्दाग्नि और गलगण्ड आदि रोग होते हैं। सड़ी हुई वनस्पति से अथवा दूसरी चीजों से मिश्रित ( मिले हुए) पानी से दस्त, शीतज्वर, कामला और तापतिल्ली आदि रोग होते हैं। __ मरे हुए जन्तुओं के सड़े हुए पदार्थ से मिले हुए पानी से हैज़ा, अतीसार तथा दूसरे भी भयंकर और जहरीले बुखार उत्पन्न होते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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