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________________ ३४८ जैनसम्प्रदायशिक्षा । इस के सिवाय एक विचारणीय विषय यह है कि-जिस समय जिस वस्तु की प्राप्ति की मन में इच्छा होती है उसी समय उस के मिलने से परम सुख होता है किन्तु विना समय के वस्तु के मिलने से कुछ भी उत्साह और उमंग नहीं होती है और न किसी प्रकार का आनन्द ही आता है, जिस प्रकार भूख के समय में सूखी रोटी भी अच्छी जान पड़ती है परन्तु भूख के विना मोहनभोग को खाने को भी जी नहीं चाहता है, इसी प्रकार योग्य अवस्था के होने पर तथा स्त्री पुरुष को विवाह की इच्छा होनेपर दोनों को आनन्द प्राप्त होता है किन्तु छोटे २ पुत्र और पुत्रियों का उस दशा में जब कि उन को न तो कामाग्नि ही सताती है और न उन का मन ही उधर को जाता है, विवाह कर देने से क्या लाभ हो सकता है ? कुछ भी नहीं, किन्तु यह विवाह तो विना भूख के खाये हुए भोजन के समान अनेक हानियां ही करता है। _हे सुजनो ! इन ऊपर कही हुई हानियों के सिवाय एक बहुत बड़ी हानि वह होती है कि जिस के कारण इस भारत में चारों ओर हाहाकार मच रहा है तथा जिससे उसके निर्मल यश में धब्बा लग रहा है, वह बुरी बालविधवाओं का समूह है कि जिन की आहे इस भारत के घाव पर और भी नमक डाल रही हैं, हा प्रभो ! वह कौन सा ऐसा घर है जिस में विधवाओं के दर्शन नहीं होते हैं, उसपर भी भोली विधवायें कैसी हैं कि जिन के दूध के दाँततक नहीं गिरे हैं, न उन को अपने विवाह की कुछ सुध बुध है और न वे यह जानती है कि हमारी चूड़ियां क्योंकर फूटी हैं, हमारे ऊपर पैदा होते ही कौन सा वात हो गया है, इसपर भी तुर्रा यह है कि जब वे बेचारी तरुण होती हैं तब कामानल ( कामाग्नि) के प्रबल होनेपर उन का नियोग भी नहीं होता है। भला सोचिये तो सही कि कामानल के दुःसह तेज का सहन कैसे हो सकता है ? सिर्फ यही कारण है कि हज़ारों में से दश पांच ही सुन्दर आचरण वाली होती हैं, नहीं तो प्रायः नाना लीलायें रचती हैं कि जिन से निष्कलंक कुल वालों के भी शिर से लज्जा की पगड़ी गिर जाती है, क्या उस समय कुलीन पुरुषों की मूछे उन के मुँहपर शोभा देती हैं ? नहीं कभी नहीं, उन के यौवन क मद एकदम उतर जाता है, उन की प्रतिष्टापर भी इस प्रकार छार पड़ जाती है किदश आदमियों में ऊँचा मुँह कर के उन की बोलने की भी ताकत नहीं रहती है, सत्य तो यह है कि-मातापिता इस जलती हुई चिताको अपनी छातीपर रेख २ कर हाड़ों का सांचा बन जाते हैं, इन सब केशों का कारण बाल्यावस्था का विवाह ही है, देखो ! भारत में विधवाओं की संख्या वर्तमान में इतनी है कि जितनी अन्य किसी देश में नहीं पाई जाती, क्योंकि अन्यत्र बाल्यावस्था में विवाह नहीं होता है, देखो ! पूर्वकाल में जब इस भारत में बाल्यावस्था में विवाह नहीं होता था तब यहां विधवाओं की गणना (संख्या) बहुत ही न्यून थी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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