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________________ चतुर्थ अध्याय । ३४५ खबर को सुनकर गृह में मंगलाचार होते हैं, इधर उधर से भाई बन्धु आते हैं यह सब कुछ तो होता ही है किन्तु जिस रात्रि को इन महारोग का आगमन होता है उस रात्रि को सम्पूर्ण नगर में कोलाहल मच जाताहै और उस गृह में तो ऐसा उत्साह होता है कि जिस का पारावार ही नहीं है अर्थात् दर्बाजोपर नौबत झड़ती है, रण्डियां नाच २ कर मुवारक बादें देती हैं, धूर गोले और आतिशबाजी चलती है, पण्डित जन मत्रो का उच्चारण करते हैं, फिर सब लोग मिल कर अत्यन्त हर्ष के साथ उस महारोग को एक उस नादान भोली मूर्ति से चपेट देते हैं कि जिस के शिरपर मौर होता है, इस के बाद उस के दूसरे ही दिन प्रातःकाल होते ही सब स्थानों में इस के उस गृह में प्रवेश होने की घोषणा (मुनादी) हो जाती है। पाठकगण ! अब तो यह महान् रोग आप को प्रत्यक्ष प्रकट हो गया, कहिये तो नही यह किस धूमधाम से आता है ? क्या २ खेल खिलाता है ? कैसे २ नाच नचाता है ? किस प्रकार सब को बेहोश कर देता है कि उस गृह के लोग तो क्या किन्तु अड़ोसीपड़ोसीतक इस के कौतुक में वशीभूत हो जाते हैं। सच पूछो तो इस रोग का ऐसे गाजे बाजे के साथ में घर में दखल होता है कि जिस में किसी प्रकार की रोक टोक नहीं होती है बरन यह कहना भी यथार्थ ही होगा कि सब लोग मिलकर आप ही उस महारोग को बुलाते हैं कि जिस का नाम "बाल्यचिवाह" (न्यून अवस्था का विवाह) है। पाठकगण ऊपर के वर्णन से समझ गये होंगे कि-जो २ हानियां इस भारत वर्ष में हुई हैं उन का मूल कारण यही बाल्यावस्था का विवाह है, इस के विषय में वर्तमान समय के अच्छे २ बुद्धिमान् डाक्टर लोग भी पुकार २ कर कहते हैं कि-ऐसे विवाहों से कुछ लाभ नहीं है किन्तु अनेक हानियां होती हैं, देखिये ! डाक्टर डियूडविस्मिथ साहब (साविक प्रिन्सिपल मेडिकल कालेज कलकत्ता) का वचन है कि-"न्यून अवस्था के विवाह की रीति अत्यन्त अनुचित है, क्योंकि इस से शारीरिक तथा आत्मिक बल जाता रहता है, मन की उमग चली जाती हैफिर सामाजिक बल कैसा?" डाक्टर नीवीमन कृष्ण बोष का वचन है कि-"शारीरिक बल के नष्ट होने के जितने कारण हैं उन सब में मुख्य कारण न्यून अवस्था का विवाह जानो, यही मस्तक के बल की उन्नति का रोकनेवाला है। मिसेस पी. जी. फिफसिन (लेडी डाक्टर मुम्बई) का कथन है कि-"हिन्दुओं की स्त्रियों में रुधिरविकार तथा चर्मदूषण आदि बीमारियों के अधिक होने का कारण बाल्यविवाह ही है, क्योंकि इस से सन्तान शीघ्र उत्पन्न होती है, फिर उस दशा में दूध पिलाना पड़ता है जब कि माता की रंगे दृढ़ नहीं होती हैं, जिस से माता दुर्बल होकर नाना प्रकार के रोगों में फंस जाती है"। डाक्टर महेन्द्रलाल सर्कार एम. डी. का वचन है कि-"बाल्यावस्था का विवाह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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