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________________ ३२६ जैनसम्प्रदायशिक्षा। लोग अधिक हैं अर्थात् पढ़े लिखे भी बहुतसे पुरुष शरीर रक्षा के नियमों से अनभिज्ञ हैं, यदि इस पर कोई पुरुप यह प्रश्न करै कि अब तो स्कूलों में अन्क विद्यायें और अनेक कलायें सिखलाई जाती हैं जिन के सीखने से लोगों का अज्ञान दूर हो रहा है फिर आप कैसे कहते हैं कि वर्तमान समय में अज्ञान लोग अधिक है ? तो इस का उत्तर यह है कि-वर्तमान समय में स्कूलों में जो अंक विद्यायें और अनेक कलायें सिखलाई जाती हैं यह तो तुम्हारा कहना ठीक है परन्तु शरीर संरक्षण की शिक्षा स्कूलों में पूरे तौर से नहीं दी जाती है, इसीलिये हम कहते हैं कि पढ़े लिखे भी बहुत से पुरुष शरीर रक्षाके नियमों से अनभिज्ञ हैं, देखो ! मारवाड़ में जो विद्या के पढ़ाने का क्रम है उसे तो हम पहिले लिख ही चुके हैं कि उन की पढाई शिक्षा के विषय में खाख धूल भी नहीं है, अब राजमाती, बंगाला, मराठी और अंग्रेज़ी पाठशालाओं की तरफ दृष्टि डालिये तो रही ज्ञात होगा कि उक्त पाठशालाओं में तथा उक्त भाषाओं की पुस्तकों में जिसम से कसरत, हवा, पानी और प्रकाश आदि का विषय पढ़ाने के लिये नियत किया या है वह क्रम ऐसा है कि छोटे २ बालकों की समझ में वह कभी नहीं आ सकता है, क्योंकि वह शिक्षा का क्रम अनि कटिन है तथा संक्षेप में वर्णित है अर्थात् विस्तार से वह नहीं लिखा गया है, देखो ! थोड़े वर्ष पूर्व अंग्रेजी के पांवें धोरण में सीनेटरी प्रायमर अर्थात् आरोग्यविद्याका प्रवेश किया गया था परन्नु उस का फल अबतक कुछ भी नहीं दीख पड़ता है, इस का कारण यही प्रत होता है कि उस का प्रारंभ वर्ष के अन्तिम दिनों में कक्षा में होता है और परीक्षा झरनेवाले पुरुष अमुक २ विषय के प्रश्नों को प्रायः पूछते हैं इस बात का खालकर शिक्षक और माष्टर लोग मुख्य २ विषयों के प्रश्नों को घोखा २ के कण्ठ करा देते हैं अर्थात् सब विपयों को याद नहीं कराते हैं, परन्तु इस में माष्टरों सा कुछ भी दोप नहीं है, क्योंकि दूसरे जो मुख्य २ विषय नियत हैं उन्हीं को सेखाने के लिये जब शिक्षकों को काफी समय नहीं मिलता है तो भला जो विपय गौणपक्ष में नियत किये हैं उनपर शिक्षक पुरुष पूरा ध्यान कब दे सकते , ऐसी दशा में सकार को ही इस विषय में ध्यान देकर इस विद्या को उन्नति देती चाहिये अर्थात् इस आरोग्यप्रद वैद्यक विद्या को सर्व विद्याओं में शिरोमणि समझ सर धोरण में मुख्य विषय के तरीके पर नियत करना चाहिये, हमारे इस कथन का यह प्रयोजन नहीं है कि श्रीमती सार को कोर्स में नियत कर के सम्पूर्ण ती वैद्यक विद्या की शिक्षा देनी चाहिये किन्तु हमारे कथन का प्रयोजन यही है कि कम से कम हवा, पानी, खुराक, सफाई और कसरत आदि के गुणदोषोंकी आवश्यक शिक्षा तो अवश्य देनी ही चाहिये, जिस वर्ताव से प्रतिदिन ही मनुष्य को काम पड़ता है, इस के लिये सहज उपाय यही है कि पाठशालाओं में पढ़ाने के ५-जिन के विषय में हम पहिले लिख चुके हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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