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चतुर्थ अध्याय ।
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हुए
कि- - "यह वेश्या तो सुन्दरता रूपी इन्धन से प्रचण्ड रूप धारण किये जलती हुई कामाभि है और कामी पुरुष उस में अपने यौवन और धन की आहुति देते हैं" पुनः भी उक्त महात्मा ने कहा है कि - " वेश्या का अधरपल्लव यदि सुन्दर हो तो भी उस का चुम्बन कुलीन पुरुष को नहीं करना चाहिये, क्योंकि वह ( वेश्या का अधरपल्लव ) तो ठग, चोर, दास, नट और जारों के थूकने का पात्र है" इसके विषयमें वैद्यक शास्त्र का कथन है कि - वेश्या की योनि सुज़ाख और गर्मी आदि चेपी रोगों का जन्मस्थान है, और विचार कर देखा जावे तो यह बात बिलकुल सत्य है और इस की प्रमाणता में लाखों उदाहरण प्रत्यक्ष ही दीख पड़ते हैं कि - वेश्यागमन करनेवालों के ऊपर कहे हुए रोग प्रायः हो ही जाते हैं जिनकी परसादी उन की विवाहिता स्त्री और उन के सन्तानों तक को मिलती है, इसका कुछ वर्णन आगे किया जायगा ।
५ मद्यपान - पांचवां व्यसन मद्यपान है, वह भी व्यसन महाहानिकारक है, मद्य के पीने से मनुष्य बेसुध हो जाता है और अनेक प्रकार के रोग भी इस से हो जाते हैं, डाक्टर लोग भी इस की मनाई करते हैं— उनका कथन है किमद्य पीनेवालों के कलेजे में चालनी के समान छिद्र हो जाते हैं और वे लोग आधी उम्र में ही प्राण त्याग करते हैं, इस के सिवाय धर्मशास्त्र में भी इस को दुर्गति का प्रधान कारण कहा है।
६ मांस खाना-छठा व्यसन मांसभक्षण है, यह नरक का देनेवाला है, इस के भक्षण से अनेक रोग उत्पन्न होते हैं, देखो ! इस की हानियों को विचार कर अब यूरोप आदि देशों में भी मांस न खाने की एक सभा हुई है उस सभा के
हुआ जिस से वह स्री और राज्यलक्ष्मी आदि सब कुछ छोड़कर वन में चला गया, देखो ! उस समय उस ने यह श्लोक कहा हैं कि-'यां चिन्तयामि सततं मयि सा विरक्ता साप्यन्यमिच्छति जनं स जनोऽन्यसक्तः ॥ अस्मत्कृते च परितुष्यति काचिदन्या धिक् तां च तं च मदनं च इमां च मां च ॥ १ ॥' इस श्लोक का अर्थ यह है कि जिस प्रियतमा अपनी स्त्री को मैं निरन्तर प्राणोंसे भी अधिक प्रिय मानता हूं वह मुझ से विरक्त हो कर अन्य पुरुष की इच्छा करती है और वह ( अन्य पुरुष ) दूसरी स्त्री पर आसक्त है तथा वह ( अन्य स्त्री) मुझ से प्रसन्न है, इस लिये मेरी प्रिया को ( जो अन्य पुरुष से प्रीति रखती है ) धिक्कार है, उस अन्य पुरुष को ( जो ऐसी रानी को पाकर भी अन्य स्त्री अर्थात् वेश्या पर आसक्त है ) धिक्कार हैं, इस अन्य स्त्री को ( जो मुझ से प्रसन्न है ) धिक्कार तथा मुझ को और इस कामदेव को भी धिक्कार है ॥ १ ॥ यह राजा बड़ा पण्डित था, इस ने भर्तृहरिशतक नामक ग्रन्थ बनाया और उस के प्रारम्भ में ऊपर लिखा हुआ लोक रक्खा है, इस ग्रन्थ के तीन शतक हैं अर्थात् पहिला नीतिशतक, दूसरा शृङ्गारशतक और तीसरा वैराग्यशतक हैं, यह ग्रन्थ देखने के योग्य है, इस में जो शृङ्गारशतक है वह लोगों को विषयजाल में फँसाने के लिये नहीं है किन्तु वह शृङ्गार के जाल का यथार्थ स्वरूप दिखलाता है जिस से उस में कोई न फँससके, ऐसे राजाओं को धन्य है |
१ - मनु जी ने अपने बनाये हुए धर्मशास्त्र ( मनुस्मृति ) में मांसभक्षण के निषेध प्रकरण में मांस शब्द का यह अर्ध दिखलाया है कि जिस जन्तु को मैं इस जन्ममें खाता हूं वही जन्तु मुझ को पर जन्म में खावेगा, उक्त महात्मा के इस शब्दार्थ से मांसभक्षकों को शिक्षा लेनी चाहिये ॥
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