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________________ चतुर्थ अध्याय । २९७ अनुसार उन्हीं ग्रन्थों में देख लेनी चाहिये, ग्रन्थ के विस्तार के भय से यहां उन का वर्णन नहीं करते हैं। तेलमर्दन की प्रथा मलबारदेश तथा बंगदेश (पूर्व) में अभीतक जारी है परन्तु अन्य देशों में इस की प्रथा बहुत ही कम दीखती है यह बड़े शोक की बात है, इस लिये सुजन पुरुषों को इस विषय में अवश्य ध्यान देना चाहिये । ___ दबा का जो तेल बनाया जाता है उस का असर केवल चार महीने तक रहता है पीछे वह हीनसत्त्व होजाता है अर्थात् शास्त्र में कहा हुआ उस का वह गुण नहीं रहता है। सामान्यतया तिली का सादा तेल सब के लिये फायदेमन्द होता है, तथा शीतकाल में सरसों का तेल फायदेमन्द है। शरीर में मर्दन कराने के सिवाय तेल को शिर में डाल कर तालुए में रमाना तथा कान में और नाक में भी डालना ज़रूरी है, यदि सब शरीर की मालिश प्रतिदिन न बन सके तो पैरों की पींडियों और हाथ पैरों के तलवों में तो अवश्य मसलाना चाहिये तथा शिर और कान में डालना तथा मसलाना चाहिये, यदि प्रतिदिन तेल का मर्दन न बन सके तो अठवाड़े में तो एकवार अवश्य मर्दन करवाना चाहिये और यदि यह भी न बन सके तो शीतकाल में तो अवश्य इस का मर्दन करवाना ही चाहिये। तेल का मर्दन कराने के बाद चने के आटे से अथवा आंवले के चूर्ण से चिकनाहट को दूर कर देना चाहिये। सुगन्धित तैलों के गुण । चमेली का तेल-इस की तासीर ठंढी और तर है। हिने का तेल-यह गर्म होता है, इस लिये जिन की वादीकी प्रकृति होवे इस को लगाया करें, चौमासेमें भी इस का लगाना लाभदायक है। ___ अरगजे का तेल-यह गर्म होता है तथा उग्रगन्ध होता है अर्थात् इस की खुशबू तीन दिनतक केशों में बनी रहती है। गुलाब का तेल-यह ठंढा होता है तथा जितनी सुगन्धि इस में होती है उतनी दूसरे में नहीं होती है, इस की खुबबू ठंढी और तर होती है । केवड़े का तेल-यह बहुत उत्तम हृदयप्रिय और ठंढा होता है। मोगरे का तेल-यह ठंढा और तर है। नींबू का तेल-यह ठंढा होता है तथा पित्तकी प्रकृतिवालों के लिये फायदेमन्द है। १-इन सब तैलों को उत्तम बनाने की रीति को वे ही जानते हैं जो प्रतिसमय इन को बनाया करते हैं, क्योंकि तिलों में फूलों को बसा कर बड़े परिश्रम से फुलेला वनाया जता है, दो रुपये सेर के भावका सुगन्धित तैल साधारण होता है, तीन चार पांच सात और दश रुपये सेर के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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