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________________ चतुर्थ अध्याय। २९५ से ही अन्न शीघ्र पच जाता है, भूख अच्छे प्रकार से लगती है, मनुष्य शर्दी गर्मी को सहन कर सकता है, वीर्य सम्पूर्ण शरीर में रम जाता है जिससे शरीर शोभायमान और बलयुक्त हो जाता है, इन बातों के सिवाय इस के अभ्यास से ये भी लाभ होते हैं कि-शरीर में जो मेद की वृद्धि और स्थूलता हो जाती है वह सब जाती रहती है, दुर्बल मनुष्य किसी कदर मोटा हो जाता है, कसरती मनुष्य के शरीर में प्रतिसमय उत्साह बना रहता है और वह निर्भय हो जाता है अर्थात् उस को किसी स्थान में भी जाने में भय नहीं लगता है, देखो! व्यायामी पुरुष पहाड़, खोह, दुर्ग, जंगल और संग्रामादि भयंकर स्थानों में बेखटके चले जाते हैं, और अपने मन के मनोरथों को सिद्ध कर दिखलाते और गृहकार्यों को सुगमता से कर लेते हैं और चोर आदि को घर में नहीं आने देते हैं, बल्कि सत्य तो यह है कि-चोर उस मार्ग होकर नहीं निकलते हैं जहां व्यायामी पुरुष रहता है, इस के अभ्यासी पुरुष को शीघ्र बुढ़ापा तथा रोगादि नहीं होते हैं, इस के करने से कुरूप मनुष्य भी अच्छे और सुडौल जान पड़ते हैं, परन्तु जो मनुष्य दिन में सोते, व्यायाम नहीं करते तथा दिनभर आलस्य में पड़े रहते हैं उन को अवश्य प्रमेह आदि रोग हो जाते हैं, इस लिये इन सब बातों को विचार कर सब मनुष्यों को अवश्य स्वयं व्यायाम करना चाहिये तथा अपने सन्तानों को भी प्रतिदिन व्यायाम का अभ्यास कराना चाहिये, जिस से इस भारत में पूर्ववत् वीरशक्ति पुनः आ जावे । व्यायाम करने में सदा देश काल और शरीर का बल भी देखना उचित है, क्योंकि इस से विपरीत दशामें रोग हो जाते हैं। कसरत करने के पीछे तुरंत पानी नहीं पीना चाहिये, किन्तु एक दो घण्टे के पीछे कुछ बलदायक भोजन का करना आवश्यक है जैसे-मिश्रीसंयुक्त गायका दूध वा बादाम की कतली आदि, अथवा अन्य किसी प्रकार के पुष्टिकारक लड्डु आदि जो कि देश काल और प्रकृति के अनुकूल हों खाने चाहिये। व्यायाम का निषेध-मिश्रित वातपित्त रोगी, बालक, वृद्ध और अजीर्णी मनुष्यों को कसरत नहीं करनी चाहिये, शीतकाल और वसन्तऋतु में अच्छे प्रकार स तथा अन्य ऋतुओं में थोड़ा व्यायाम करना योग्य है, अति व्यायाम भी नहीं करना चाहिये, क्योंकि अत्यन्त व्यायाम के करने से तृपा, क्षय, तमक, श्वास, रक्तपित्त, श्रम, ग्लानि, कास, ज्वर और छर्दि आदि रोग हो जाते हैं। तैलमर्दन । तेल का मर्दन करना भी एक प्रकार की कसरत है तथा लाभदायक भी है इसलिये प्रतिदिन प्रातःकाल में स्नान करने से पहिले तेल की मालिश करानी चाहिये, यदि कसरत करनेवाला पुरुष कसरत करने के एक घंटे पीछे शरीर में तेल का मर्दन करवाया करे तो इस के गुणों का पार नहीं है, तेल के मर्दन के समय में इस बात का भी स्मरण रहना चाहिये कि-तेल की मालिश सब से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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