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________________ भूमिका जैनसम्प्रदायशिक्षा इस नामसे यद्यपि यह पुस्तक केवल जैनसम्प्रदायसे सम्बंध रखनेवाली प्रतीति होती है । परन्तु यथार्थमें इसमें जिन विषयोंका वर्णन किया गया है, वे प्रत्येक सम्प्रदायके आबालवृद्ध जनोंके लिये पठन पाठन तथा मनन करने योग्य हैं । रजोदर्शन, गर्भाधान, और गर्भावस्थासे लेकर जन्म, कुमार, युवा, और वृद्धावस्था तककी कर्तव्य शिक्षायें, आरोग्यरक्षा, ऋतुचर्या, रोगनिदान, पूर्वरूप, उपशम, डाक्टरी और देशीरीतिसे रोगोंकी परीक्षा चिकित्सा, पथ्यापथ्य आदि वैद्यक विषय बड़ी योग्यता और बड़े विस्तारके साथ लिखे हैं। इसके सिवाय व्याकरण, नीति, राजनीति, सुभाषित, ओसवालवंशोत्पत्ति, पोरवालवंशोत्पत्ति, खंडेवालवंशोत्पत्ति, माहेश्वरीवंशोत्पत्ति, बारह वा चौरासी जातियोंका वर्णन, ज्योतिष, खरोदय, शकुनविद्या, आदि उपयोगी विषयोंका भी इसमें संग्रह है। इस ग्रन्थके अध्ययनसे ऐसा मालूम होता है कि, इसका रचनेवाला बहुत बड़ा अनुभवी और विविध विषयोंकी योग्यता रखनेवाला है। वैद्यक विषयमें तो उसकी असाधारण योग्यता मालूम होती है। जो हो विद्वानोंसे हमारा निवेदन है कि, वे एक वार इस ग्रन्थको आयंत पढ़कर परीक्षा करें और ग्रन्थकर्ताके परिश्रमको सफल करें। क्योंकि "कर कंगनको आरसीकी जरूरत नहीं होती है । अलं विस्तरेण । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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