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________________ चतुर्थ अध्याय । २८१ ग्रीष्म ऋतु में क्या गरीब और क्या अमीर सब ही लोग शर्वत को पीना चाहते हैं और पीते भी हैं तथा शर्वत का पीना इस ऋतु में लाभकारी भी बहुत है परन्तु वह (शर्वत ) शुद्ध और अच्छा होना चाहिये, अत्तार लोग जो केवल मिश्री की चासनी बना कर शीशियों में भर कर बाज़ार में बेंचते हैं वह शर्वत ठीक नहीं होता है अर्थात् उस के पीने से कोई लाभ नहीं हो सकता है इस लिये असली चिकित्सा प्रणाली से बना हुआ शर्वत व्यवहार में लाना चाहिये, किन्तु जिन को प्रमेह आदि या गर्मी की वीमारी कभी हुई हो उन लोगों को चन्दन गुलाब केवड़े वा खस का शर्वत इन दिनों में अवश्य पीना चाहिये, चन्दन का शर्वत बहुत ठंढा होता है और पीने से तबीयत को खुश करता है, दस्त को साफ ला कर दिल को ताकत पहुँचाता है, कफ प्यास पित्त और लोहू के विकारों को दूर करता है तथा दाह को मिटाता है, दो तोले चन्दन का शर्वत दश तोले पानी के साथ पीना चाहिये तथा गुलाब वा केवड़े का शर्वत भी इसी रीति से पीना अच्छा है, इस के पीने से गर्मी शान्त होकर कलेजा तर रहता है, यदि दो तोले नींबू का शर्वत दश तोले जल में डाल कर पिया जावे तो भी गर्मी शान्त हो जाती है और भूख भी दुगुनी लगती है, चालीस तोले मिश्री की चासनी में बीस नींबुओं के रस को डाल कर बनाने से नींबू का शर्वत अच्छा बन सकता है, चार तोले भर अनार का शर्वत वीस तोले पानी में डालकर पीने से वह नज़ले को मिटा कर दिमाग को ताकत पहुंचाता है, इसी रीति से सन्तरा तथा नेचू का शर्यत भी पीने से इन दिनों में बहुत फायदा करता है। जिस स्थान में असली शर्वत न मिल सके और गर्मी का अधिक जोर दिखाई देता हो तो यह उपाय करना चाहिये कि-पच्चीस बादामों की गिरी निकाल कर उन्हें एक घण्टेतक पानी में भीगने दे, पीछे उन का लाल छिलका दूर कर तथा उन्हें घोट कर एक गिलास भर जल बनावे और उस में मिश्री डाल कर पी जावे, ऐसा करने से गर्मी बिलकुल न सतावेगी और दिमाग को तरी भी पहुंचेगी। गरीब और साधारण लोग ऊपर कहेहुए शर्वतों की एवज़ में इमली का पानी कर उस में खजूर अथवा पुराना गुड़ मिला कर पी सकते हैं, यद्यपि इमली सदा खाने के योग्य वस्तु नहीं है तो भी यदि प्रकृति के अनुकूल हो तो गर्मी की सख्त ऋनु में एक बर्ष की पुरानी इमली का शर्वत पीने में कोई हानि नहीं है किन्तु फायदा ही करता है, गेहूँ के फुलकों (पतली २ रोटियों) को इस के शर्वत में मीज कर (भिगो कर ) ग्वाने से भी फायदा होता है, दाह से पीड़ित तथा लू लगे हुए पुरुष के इमली + भीगे हुए गूदे में नमक मिला कर पैरों के तलवों और हथेलियों में मलने से तत्काल फायदा पहुँचता है अर्थात् दाह और लू की गर्मी शान्त हो जाती है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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