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________________ जैनसम्प्रदायशिक्षा । २७० डाक्टर लोग निर्बल आदमियों को कॉडलीवर ऑइल नामक एक दवा देते हैं अर्थात् जिस रोग में उन को ताकतवर दवा वा खुराक के देने की आवश्यकता होती है उस में वे लोग प्रायः उक्त दवा को ही देते हैं, इस के सिवाय क्षय रोग, भूख के द्वारा उत्पन्न हुआ रोग, कण्ठमाला, जिस रोग में कान और नाक से पीप बहता है वह रोग, फेफसे का शोथ ( न्यूमोनिया), कास, श्वास (बोनकाइ स ), फेफसे के पड़त का घाव, खुल खुलिया अर्थात् बच्चे का बड़ा खांस और निकलता आदि रोगों में भी वे लोग इस दवा को देते हैं, इस दवा में मूल्य के भेद से गुण में भी कुछ भेद रहता है तथा अल्पमूल्यवाली इस दवा में दुर्गन्धि भी होती है परन्तु बड़िया में नहीं होती है, इस दवा की बनी हुई टिकियां भी मिलती हैं जो कि गर्म पानी या दूध के साथ सहज में खाई जा सकती हैं । इस ( ऊपर कही हुई ) दवा के ही समान माल्टा नामक भी एक दवा है जो के अत्यन्त पुष्टिकारक तथा गुणकारी है, तथा वह इन्हीं (साधारण) जीउ से और जब केस ओट नामक अनाज से बनाई जाती है । कोलीवर ओल बीमार आदमी के लिये खुराक का काम देता है तथा हज़म भी जल्दी ही हो जाता है । उक्त दोनों पुष्टिकारक दवाओं में से कॉडलीवर ओल जो दवा है यह आर्य लोगों के लेने योग्य नहीं है, क्योंकि उस दवा का ना मानो तिलाञ्जलि देना है | को जल बीमार के पीने योग्य जल -- यद्यपि साफ और निर्मल पानी का तो नीरोग पुरुष को भी सदा उचित है परन्तु बीमार को तो अवश्य ही स्वच्छ पीना चाहिये, क्योंकि रोग के समय में मलिन जल के पीने से अन्य भी दूसरे प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं, इस लिये जल को स्वच्छ करने की युक्तियों से खूब स्वच्छ कर अथवा अंग्रेजों की रीतिसे अर्थात् डिस्टील्ड के द्वारा स्वच्छ कर के पहिले लिखे अनुसार पानी में तीन उबाला देकर ठंढाकर के रोगी को पिलाना चाहिये, डाक्टर लोग भी हैजे में तथा सख्त चार की प्यास में ऐसे ही ( स्वच्छ किये हुए ही ) जल में थोड़ा २ बर्फ मिला कर पिलाते हैं । नींबू का पानक-बहुत से बुखारों में नींबू का पानक भी दिया जाता है, इसके बनाने की यह रीति है कि नींबू की फांके कर तथा मिश्री पीसकर एक काच या पत्थर के वर्त्तन में दोनों को रख कर उसपर उबलता हुआ पानी डालना चाहिये तथा जब वह ठंढा हो जाये तब उसे उपयोग में लाना चाहिये । १- इस दवा को पुष्ट समझकर उन ( डाक्टर) लोगों ने इसे रोग की खुराक में दाखिल किया है । कि यह (बॉडीवर ऑइल ) जो दवा है सोही का ल है ॥ देखो ! बातासूत्र में लिखा है कि सन्दीखाई का जल सुबुद्धि मन्त्री ने ऐसा स्वच्छ वर राजा जितुको पिलाया था कि जिन को देख कर और पीकर राजा बड़ा आश्चर्य में हो गया था, इस से विदित होता है कि पूर्व समय में भी जल के स्वच्छ करने की अनेक उत्तमोत्तम पीतियां थीं तथा स्वच्छ करके ही जल का उपयोग किया जाता था | Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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