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________________ चतुर्थ अध्याय । २५३ आमका पना -- तत्काल रुचिकर्त्ता, बलकारी तथा शीघ्र ही इन्द्रियों की तृप्तिकारी है । इमलीका पना - वातनाशक, किञ्चित् पित्तकफकर्त्ता, रुचिकारी तथा अग्निदीपक है। नींबूका पना - अत्यन्त खट्टा, वातनाशक, अभिदीपक, रुचिकारी तथा सम्पूर्ण किये हुए आहार का पाचक है । धनियेका पना - यह पित्त के उपद्रवों को शान्त करता है । जौं का संतू - शीतल, दीपन, हलका, दस्तावर, कफपित्तनाशक, रूक्ष और लेखन (दुर्बलकरनेवाला) है, इस का पीना बलदायक, बृष्य, बृंहण, भेदक, तृप्तिकर्त्ता, मधुर, रुचिकारी तथा अन्त में बलनाशक है, यह कफ, पित्त, परिश्रम, भूस, प्यास, अण्डवृद्धि और नेत्ररोग को नष्ट करता है । तथा दाह से व्याकुल और व्यायाम से श्रान्त ( थकेहुए ) पुरुषों के लिये हितकारी है । चना और जौं का सत्तू - यह कुछ वातकारक है इसलिये इस में बूरा और घी डाल कर इसे खाना चाहिये । शालिसत्तू - अग्निवर्धक, हलका, शीतल, मधुर, ग्राही, रुचिकर्त्ता, पथ्य, बलकारक, शुक्रजनक और तृप्तिकारक है । बहुरी - दुर्जर (कठिनता से पचनेवाली ), रूक्ष, तृषा लगानेवाली तथा भारी है, परन्तु प्रमेह कफ और वमन को नष्ट करती है । खील (लाजा ) – मधुर, शीतल, हलकी, अग्निदीपक, अल्पमूत्रकर्त्ता, रूक्ष, बकर्त्ता तथा पित्तनाशक है, यह कफ, वमन, अतीसार, दाह, रुधिर विकार, प्रमेह, मेदरोग और तृषा को दूर करती है 1 चिउरा ( चिरमुरा ) – भारी, वातनाशक तथा कफकर्त्ता हैं, यदि इन को दूध के साथ खाया जावे तो ये बृंहण, वृष्य, बलकारी और दस्त को लानेवाले होते हैं । १ - इस को मारवाड़ में सातू कहते हैं, इसके खाने में सात नियमों को ध्यान में रखना चाहिये कि - भोजन कर के इस को न खावे, दाँतों से रौधकर न खावे, रात्रि में न खावे, बहुत नसावे, एक जल में दूसरे प्रकार का जल मिलाकर न खावे, मिठाई आदि के विना (केवल सत्तू ) न खावे, गर्म करके तथा दूध के साथ न खावे ॥ २ - इस को पूर्व में कहते हैं तथा यह शालि चवलों का बनाया जाता है । बहुरी कहते हैं । ४ - यह धानों के भूनने से बनती है ।। भून कर बिना खिले हुओं को गर्म ही ओखली में डालकर कूटने से ये तैयार होते हैं | २२ जै० सं० भुजिया का सत्तू ३- तुषरहित भुने हुए जौओं को ५- तुषरहित हरे शालि चावलों को Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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