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________________ चतुर्थ अध्याय । २५१ खिचडी-वीर्यदाता, बलकर्ता भारी, पित्तकफका, देर में पचनेवाली, बुद्धिकर्ता, मूत्रकारक तथा विष्टंभ और मल को उत्पन्न करनेवाली है। खीर-देर में पचनेवाली, बृंहणी तथा बलवर्धक है। समई-धातुओं की तृप्ति करनेवाली, बलकारी, भारी, पित्त और वात को नष्ट करनेवाली, ग्राही, सन्धि कर्ता तथा रुचिकारी है। पूरी-बृंहण, वृष्य, बलकारी, रुचिकर्ता, पाक में मधुर, ग्राही और त्रिदोषनाशक है। लप्सी (सीरा)-बृंहण, वृष्य, बलकारक, वातपित्तनाशक, स्निग्ध, कफकारी, भारी, रुचिकर्ता और अत्यन्त तृप्ति कर्ता है। रोटी-बलकारी, रुचिकर्ता, बृंहणी (पुष्टिकर्ता), रस और रक्त आदि धातुषों को बढ़ानेवाली, वातनाशक, कफकर्ता, भारी और प्रदीप्त अग्निवालों के लिये हितकर्ता है। बाटी-बृहणी, शुक्रक", हलकी, दीपनकर्ता, कफकारी तथा बलकर्ता है, एवं पीनस, श्वास और कास रोग को दूर करती है। जौकी रोटी-रुचिकर्ता, मधुर, विशद और हलकी है, मल, शुक्र और वादी को करती है तथा कफ के रोगों को नष्ट करती है। उडदकी रोटी-कफपित्तनाशक तथा कुछ वायुकारक है। चनेकी रोटी-रुक्ष, कफ पित्त और रुधिर के विकारों को दूर करनेवाली, भारी, पेट को फुलानेवाली, नेत्रों के लिये अहित तथा शोषक है। बेढई-बलकारी, वृष्य, रुचिकर्ता, वातनाशक, उष्णता को बढ़ानेवाली, भारी, बृंहणी और शुक्र को प्रकट करनेवाली है, मूत्र तथा मल का भेदन करती है, स्तनसंबन्धी दूध, मेद, पित्त और कफ को करती है तथा गुदा का मस्सा, लकवा, वात, श्वास और परिणामशूल को दूर करती है। पापड-परम रुचिकारी, दीपन पाचन, रूक्ष और कुछ २ भारी हैं, परन्तु मूंग के पापड़ हलके और पथ्य होते हैं। कचोरी-तेल की कचोरी-रुचिकर, स्वादु, भारी, निग्ध, बलकारी, रक्तपित्त को कुपित करनेवाली, नेत्रों के तेज का भेदन करनेवाली, पाक में गर्म तथा वातनाशक है, परन्तु घी की बनी हुई कचोरी नेत्रों को हितकारक तथा रक्तपित्त की नाशक होती है। १-ये पूर्वीय देशों में श्रावग में बहुत बनाई जाती हैं ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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