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________________ जैनसम्प्रदायशिक्षा । चौथा भेद-यण् । दो शब्दोंका स्वरों किस स्वर को परिभाषा ॥ द्वारा मिलाप ॥ क्या हुभा ॥ हस्व वा दीर्घ इ, उ, विधि+अर्थ-विध्यर्थ । इ+अ य । ऋ, से परे कोई प्रति+आशा-प्रत्याशा । इ+आ-या। असंवर्ण स्वर रहे तो बहु+आरम्भ-बह्वारम्भ । उ+आ-वा। इ को य् , उ को व् बहु+ई बह्वीर्षा । उ+ई-वी। और ऋको र हो अतिथि+उपकार-अतिथ्युपकार । इ+उ-यु । जाता है तथा अगला निधि+ऐश्वर्य=निध्यैश्वर्य । इ+ऐ-यै । स्वर उस य, व, र, पितृ+आगमन=पित्रागमन। ऋ+आ-रा । में मिल जाता है ॥ मातृ+ऐश्वर्य मात्रैश्वर्य। ऋ+ऐ-रै। स्वामि आनन्द-स्वाम्यानन्द ॥ इ+आ या ॥ पांचवां भेद-अयादि । दो शब्दों का स्वरों किस स्वर को परिभाषा ॥ द्वारा मेल ॥ क्या हुआ ॥ ए, ऐ, ओ, औ, ने+भन-नयन । ए+अ=अय। इनसे परे कोई स्वर गै+अन=गायन । ऐ+अ-आय। रहे तो क्रमसे उनके पो+अन-पवन । ओ+अ अव। स्थानमें अय्, आय् पौ+अक-पावक । औ+अ आव। अव्, आव्, हो जाते भौ+इनी भाविनी। औ+इ=आवि। हैं तथा अगला स्वर नौ+आ नावा। औ+आ-आवा। पूर्व व्यञ्जनमें मिला .. शै+ई-शायी। ऐ+ई आयी। दिया जाता है। शे+आते-शयाते। ए+आ-अया। भौ+उक-भावुक । औ+उ-आवु ॥ व्यञ्जनसन्धि। इसके नियम बहुत से हैं-परन्तु यहां थोड़े से दिखाये जाते हैं:नम्बर ॥ . नियम ॥ व्यञ्जनों के द्वारा शब्दों का मेल ॥ १ यदि कू से घोष, अन्तस्थ वा स्वर सम्यक्+दर्शन-सम्यग्दर्शन । दिक्+ वर्ण परे रहे तो क् के स्थानमें ग् अम्बर-दिगम्बर । दिक्+ईशा दिगीशः हो जाता है । इत्यादि ॥ २ यदि किसी वर्ग के प्रथम वर्ण से चित्+मूर्ति चिन्मूर्ति । चित्+मय परे सानुनासिक वर्ण रहे तो उसके चिन्मय । उत्+मत्त-उन्मत्त । तत्+ स्थान में उसी वर्ग का सानुनासिक नयन-तन्नयन । अप्+मान-अम्मान । वर्ण हो जाता है। १-जिसका स्थान और प्रयत्न एक न हो उसे असवर्ण कहते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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