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________________ २३६ जैनसम्प्रदायशिक्षा | क्योंकि विलायत की भी उन को इस से कुछ भी हानि नहीं पहुँच सकती है, हवा इतनी शर्द है कि वहां मद्य आदि अत्युष्ण पदार्थों का विशेष सेवन करनेपर भी उन ( मद्य आदि) की गर्मी का कुछ भी असर नहीं होता है तो भला वहां चीनी की गर्मी का क्या असर हो सकता है, किन्तु भारत वर्ष के समान तो वहां चीनी का सेवन लोग करते भी नहीं है, केवल चाय आदि में ही उनका उपयोग होता है, खाली चीनी का या उस के बने हुए पदार्थों का जिस कार भारतवर्षीय लोग सेवन करते हैं उस प्रकार वहां के लोग नहीं करते हैं, और न उन का यह प्रतिदिन का खाद्य और पौष्टिक पदार्थ भी है, इसलिये इस का वहां कोई परिणाम नहीं होता है, यदि भारतवर्ष के समान इस का बुरा परिणाम वहां भी होता तो अवश्य अबतक वहां इस के कारखाने बंद हो गये होते, वहां लेग भी इसी लिये नहीं होता है कि वह देश यहां के शहर और गाँव की अपेक्षा बहुत स्वच्छ और हवादार है, वहां के लोग एकचित्त हैं, परस्पर सहायक हैं, देशहितैषी हैं तथा श्रीमान् हैं । इस बात का अनुभव तो प्रायः सब को होही चुका है कि- हिन्दुस्तान में प्लेग से दूषित स्थान में रहनेपर भी कोई भी यूरोपियन आजतक नहीं मरा, इसी प्रकार श्रीमान् लोग भी प्रायः नहीं मरते हैं, परन्तु हिन्दुस्थान के सामान्य लोग विविधचित्त, परस्पर निःसहाय और देश के अहित हैं, इसलिये आजकल जितने बुरे पदार्थ, बुरे प्रचार और बुरी बातें हैं उन सबों ने ही इस अभागे भरतपर ही आक्रमण किया है । अब अन्त में हम को सिर्फ इतना ही कहना है कि अपने हित का वेचार प्रत्येक भारतवासी को करके अपने धर्म और शरीर का संरक्षण करना चाहिये, यह अपवित्र चीनी आर्यों के खाने योग्य नहीं है, इसलिये इस का त्याग करना चाहिये, देखो ! सरल स्वभाव और मांस मद्य के त्यागी को आर्य कहते हैं तथा उन ( आर्यों ) के रहने के स्थान को आर्यावर्त कहते हैं, इस भरतक्षेत्र से साढ़े पच्चीस देश आयों के हैं, गंगा सिन्धुके बीच में - उत्तर में पिशोर, दक्षिण में समुद्र कांठा तक २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ नारायण, ९ बलदेव, ९ प्रतिनारायण, ११ रुद्र और ९ नारद आदि उत्तम पुरुष इसी आर्यावर्त में जन्म लेते हैं, इसलिये ऐसे पवित्र देश के निवासी महर्पियों के सन्तान आर्य लोगों को सदा उसी मार्ग पर चलना उचित है, जिसपर चलने से उनके धर्म, यश, सुख, आरोग्यता, पवित्रता और प्राचीन मर्यादा का नाश न हो, क्योंकि इन सब का संरक्षण कर मनुष्यजन्म के फल को प्राप्त करना ही वास्तवमें मनुष्यत्व है I १ मुक्ति को तो सब ही मनुष्य क्षेत्रों से प्राणी जाता है, लन्दन और अमेरिकातक सूत्रकार के कथन से भरतक्षेत्र माना जा सकता है, देखो ! अमेरिका जैन संस्कृत रामायग ( रामचरित्र ) के कथनानुसार पाताल लंका ही है, यह विद्याधरों की वस्ती थी, तथा रावण ने वहीं जन्म लिया था । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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