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________________ १० जैनसम्प्रदायशिक्षा | ११ - कोई अक्षर संयोग में पूरे स्वरूप से मिलते हैं और कोई आधे स्वरूप से मिलते हैं, जैसे श+क-इक, इ+क-क, इत्यादि ॥ के दो भेद और भी हैं एक सानुनासिक और दूसरे १२-१ - अक्षरों निरनुनासिक ॥ १३ - सानुनासिक उन्हें कहते हैं जिन का उच्चारण मुख और नासिका से हो, इसका चिह्न अर्द्धचन्द्राकार बिन्दु तथा अनुस्वार है जैसे दाँत, काँच, कंठ, अंग, इत्यादि । इन के सिवाय ड ज ण न म भी अनुनासिक हैं । १४ -- अ ण न म ये वर्ण प्रायः अपने ही वर्ग के वर्णों से मिलते हैं, जैसे- -दन्त, पम्प, कङ्कण, कण्ठ, व्यञ्जन, इत्यादि ॥ वर्णोंके स्थान और प्रयत्नका वर्णन | संख्या स्थान | १ कण्ठ २ तालु ३ मूर्धा ४ दन्त ओष्ठ ६ कण्ठ और तालु ७ कण्ठ और ओठ ८ दन्त और ओष्ठ ९ मुख और नासिका ५ ख च छ 44 24 H विवार || विचार | बाह्य || श्वास ॥ श्वास ॥ अघोष ॥ अघोष ॥ अल्पप्राण ॥ महाप्राण ॥ क ट अक्षर त प 105 अक्षर ॥ अ, आ, कवर्ग, विसर्ग और हकार ॥ इ, ई, चवर्ग, यकार और शकार ॥ ऋ, ॠ, टवर्ग, रेफ और षकार ॥ लु, ल, तवर्ग, लकार और सकार ॥ उ, ऊ, पवर्ग और उपध्मानीय ॥ और ऐ ॥ ओ और औ ॥ थ फ 쇠의석 श प वकार ॥ ङ, ञ, ण, न और म ॥ प्रयत्नवर्णन | स ग ङ ज ज उ ण द न ब म उदात्त, अनुदात्त, स्वरित ॥ अ संवार, नाद, घोष, अल्पप्राण ॥ | संवार ॥ नाद ॥ घोष ॥ महाप्राण ॥ ह्रस्व, आभ्यन्तर स्पृष्ट । ईषद्विवृत, स्पृष्ट, विवृत, विवृत ॥ इ ए उ ओ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ल नाम ॥ य व र ल कण्ठ्य ॥ तालव्य ॥ मूर्धन्य ॥ दन्त्य ॥ ओष्ठ ॥ कण्ठतालव्य ॥ कण्ठौष्ट्य ॥ दन्तोष्ठ ॥ सानुनासिक ॥ घ झ ढ भ. he ह ई | ईषद्वि त्स्पृष्ट। स्पृष्ट । वृत । १ - देखो संयुक्ताक्षरों का दूसरा नियम ॥ २ - प्रयत्न दो प्रकार के होते हैं आभ्यन्तर और बाह्य | आभ्यन्तर के पांच भेद हैं--स्पृष्ट, ईषत्स्पृष्ट, ईषद्विवृत, विवृत और संवृत । बाह्य प्रयत्न ११ प्रकार का है - विवार, संवार, श्वास, नाद, घोष, अघोष, अल्पप्राण, महाप्राण, उदात्त, अनुदात्त और स्वरित ॥ www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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