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________________ २२० जैनसम्प्रदायशिक्षा। उपयोग-गर्म किये हुए दूध में जाँवन देकर जो दही बनता है वह कच्चे दूध के जमाये हुए दही की अपेक्षा अधिक गुणकारी है, क्योंकि वह दही रुचिकर्ता पित्त और वायु को मिटानेवाला तथा धातुओं को ताकत देनेवाला है। मलाई निकाला हुआ दही दस्त को रोकता है, ठंढा है, वायु को उत्पन्न करता है, हलका है, ग्राही है और अग्नि को प्रदीप्त करता है, इसलिये ऐसा दही पुराने मरोड़े, ग्रहणी और दस्त के रोग में हितकारी है। ___ कपड़े से छाना हुआ दही बहुत स्निग्ध, वायुहर्ता, कफ का उत्पन्न करन् वाला, भारी, शक्तिदायक पुष्टिकारक और रुचिकारक है, तथा मीठा होने से यह पित्त को भी अधिक नहीं बढ़ाता है, यह गुण उस दही का है जिसे कपड़े में बांध कर उस का पानी टपका दिया गया हो, ऐसे (पानी टपकाये हुए) दही को मिश्री मिला कर खाने से वह प्यास, पित्त, रक्तविकार तथा दाह को मिटाता है। गुड़ डालकर खाया हुआ दही वायु को मिटाता है, पुष्टिकर्ता तथा भारी है। वैद्यक शास्त्र और धर्मशास्त्र रात्रि को यद्यपि सब ही भोजनों की मना : करते हैं परन्तु उस में भी दही खाने की तो बिलकुल ही मनाई की है, क्योंकि उपयोगी पदार्थों को साथ में मिला कर भी रात्रि को दही के खाने से अनेक प्रकार के महाभयंकर रोग उत्पन्न होते हैं, इस लिये रात्रि को दही का भोजन कभी नहीं करना चाहिये तथा जिन जिन ऋतुओं में दही का खाना निषिद्ध है उन डन ऋतुओं में भी दही नहीं खाना चाहिये। । हेमन्त शिशिर और वर्षा ऋतु में दही का खाना उत्तम है तथा शरद् (आश्विन और कार्तिक) ग्रीष्म (ज्येष्ट और आषाढ़) और वसन्त (चैत्र और वैशाख ) ऋतु में दही का खाना मना है। ___ बहुत से लोग ऋतु आदि का भी कुछ विचार न करके प्रतिदिन दही का सेवन करते हैं यह महा हानिकारक बात है, क्योंकि ऐसा करने से रक्तविकार, पित्त, वातरक्त, कोढ़, पाण्डु, भ्रम, भयंकर कामला (पीलिये का रोग), आलस्य, शोथ, बुढ़ापे में खांसी, निद्रा का नाश, पुरुषार्थ का नाश और अल्पायु का होना आदि बहुत सी हानियां हो जाती हैं। क्षय, वादी, पीनस और कफ के रोगियों को खाली दही भूल कर भी कभी नहीं खाना चाहिये, हां यदि उपयोगी पदार्थों को मिलाकर खाया जाये तो कोई हानि की बात नहीं है किन्तु उपयोगी पदार्थों को मिलाकर खाने से ला न होता है, जैसे-गुड़ और काली मिर्च को दही में मिलाकर खाने से प्रायः पीन्स रोग मिट जाता है इत्यादि। १-बीकानेर के ओसवाल लोग अपनी इच्छानुसार प्रतिदिन मनमाना दही का बन करते हैं, ओसवाल लोग ही क्या किन्तु उक्त नगर के प्रायः सब ही लोग प्रातःकाल दही मोल लेकर उस के साथ टंडी रोटी से सिरावणी हमेशा किया करते हैं, यह उन के लिये अति हानिकारक बात है ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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