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________________ १९४ जैनसम्प्रदायशिक्षा। के अमुक पदार्थ में उक्त पांचों तत्वों में से प्रत्येक तस्व का इतना २ भाग मौजूद है तथा इस के जानने से बड़ा भारी लाभ यह है कि प्रत्येक मनुष्य प्रत्येक पदार्थ के गुण और उस में स्थित तत्वों को जान कर उस पदार्थ की सुखकारिणी योजना को दूसरे पदार्थों के साथ कर सकता है। गुण के अनुसार खुराक के दो भेद हैं-अर्थात् पुष्टिकारक और गर्मी लान् वाली, इन में से जो खुराक शरीर के नष्ट हुए परमाणुओं की कमी को पूरा करती है उन को पुष्टिकारक कहते हैं । तथा जो खुराक शरीर की गर्मी को ठीक रीति से कायम रखती है उस को गर्मी लानेवाली कहते हैं, यद्यपि पुष्टिकारक खुराक के पदार्थ बहुत से हैं तथापि उन का प्रत्येक का भीतरी पौष्टिक तत्वों का गुण एक दूसरे से मिलता हुआ ही होता है, रसायनिक प्रयोगके वेत्ता विद्वानों ने यह निश्चय किया है कि-पौष्टिक खुराक में नाइट्रोजन नामक एक विशेष तत्व है और गर्मी लानेवाली खुराक में कार्वन नामक एक विशेष तत्व है, गर्मी लानेवाली खुराक से शरीर की गर्मी कायम रहती है अर्थात् वायु तथा ऋतु आदि का परिवर्तन होने पर भी उक्त खुराक से शरीर की गर्मी का परिवर्तन नहीं होताहै अर्थात् गर्मी प्रायः समान ही रहती है और शरीर में गर्मी के ठीक रीति से कायम रहने से ही जीवन के सब कार्यों का निर्वाह होता है, यदि शरीर में ठीक रीति से गर्मी कायम न रहे तो जीवन का एक कार्य भी सिद्ध न हो सके । देखो ! बाहरी हवा में चाहे जैसा परिवर्तन होजावे तथापि गर्मी लानेवाली खुराक के लेने से शरीर की गर्मी बराबर बनी रहती है, ठंढे देशों में (जहां अधिक शीत के कारण पानी का कर्फ जम जाता है और पारेकी घड़ी में पारा ३२ डिग्री से भी नीचे चला जाता है वहां) और गर्म देशों में (जहां अधिक गर्मी के कारण उक्त घड़ी का पारा १२५ डिग्री से भी ऊँचा चढ़ जाता है वहां) भी अंग की गर्मी ९० से १०० डिग्री तक सदा रहा करती है। शरीर में गर्मी को कायम रखनेवाली खुराक में मुख्यतया कार्वन और हाइटोजन नामक दो तत्व हैं और वे दोनों तत्व प्राणवायु ( आक्सिजन) के सा प रसायनिक संयोग के द्वारा मिलते हैं अर्थात् गर्मी उत्पन्न होती है तथा यह संयोग प्रत्येक पलमें जारी रहता है, परन्तु जब किसी व्याधि के होनेपर इस संयोग में फर्क आ जाता है तब शरीर की गर्मी भी न्यूनाधिक हो जाती है। पौष्टिक खुराक के अधिक खाने से लोह में स्वाभाविक शक्ति न रहकर विशेप शक्ति उत्पन्न हो जाती है और ऐसा होने से उस ( लोहू) का जमा कलेजे और मगज़ आदि अवयवों में बहुत हो जाता है इस लिये वे सब अवयव नोटे हो जाते हैं इसलिये पुष्टिकारक खुराक को अधिक खानेवाले लोगों को चा हेये कि १-लोह का अधिक जमाव होने से कभी २ कलेजे का रोग हो जाता है और कभी २ मगजपर भी लोहू का जोश चढ़ जाता है, इस से अधिक पुष्टिकारक खुराक के बानेवाले लोगों को बहुत भय में गिरना पड़ता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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