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________________ चतुर्थ अध्याय । १९१ आवश्यक है, बहुत से अन्नों में पौष्टिक तत्त्व न्यूनाधिक परिमाण में रहता है अर्थात् किन्हीं में कम और किन्हीं में विशेष रहता है, इस विषय में विद्वानों ने यह निय किया है कि खुराक सम्बन्धी नित्य के उपयोगी पदार्थों में से घी, मक्खन, शक्कर और साबूदाना, इन चारपदार्थों में पौष्टिक तत्त्व विलकुल नहीं है, क्योंकि इनमें से पहिले दो पदार्थों में मुख्य भाग चरवीका है और दूसरे दोनों मुख भाग आटे के सत्त्व का है, तथा ये चारों पदार्थ शरीर की गर्मी को कायम रखने का काम करते हैं । चरबीवाले तत्त्व - चरबीवाले तत्त्वों से युक्त पदार्थों में मुख्य पदार्थ - घी, मक्खन और तेल आदि हैं तथा इन के सिवाय अन्नों में भी यह तत्व न्यूनाधिक रहता है, परन्तु सब अन्नों में से गेहूँ में इस तत्त्व का भाग सब से कम है अर्थात् १०० भागों में केवल एक भाग इस तत्त्व का है तथा मकई ( मका वा मक्का) में इस तत्व का भाग सब अन्नों की अपेक्षा अधिक है अर्थात् १०० भागों में ६ भाग इस तत्व के हैं, शीत ऋतु चरबीवाले पदार्थों का खाना बहुत लाभदायक होता है। मुख्य आर के सत्ववाले तत्त्व - आटे के साले तत्वों से 'युक्त पदार्थों में पदार्थ कर, खांड, गुड़, चवल और दूसरे धान्य भी हैं, शरीर में श्वासोच्छ्वास की जो क्रिया होती है वह कार्बन नामक एक पदार्थ से होती है और वह ( कार्य ) इस तत्ववाले तथा चरबीवाले तत्वों से युक्त खुराक से उत्पन्न होता है, गर्म देशों में तथा गर्मी की ऋतु में इस तत्त्ववाले पदार्थ विशेष अनुकूल आते हैं। क्षार - शरीर का प्रत्येक भाग क्षार के मेल से बना हुआ है, दूधमें तथा लोहू में भी क्षार का भाग है, यह क्षार भी खुराक सम्बन्धी सब पदार्थों में न्यूनाधिक परिमाण में स्थित है तथा खुराक के द्वारा उदर (पेट) में जाकर शरीर ये सब भागों को बनाता और पुष्ट रखता है, यद्यपि शरीर के सब भागों की रचना में क्षार उपयोगी है तथापि हड्डियों का बन्धान तो मुख्यतया क्षार का ही है, इसीलिये हाड़ों के पोषण के लिये क्षार की अत्यन्त आवश्यकता है अर्थात् काफी र के न मिलने से सब हाड़ निर्बल और सुखे से होकर टूटजानेवाले जैसे हो जाते हैं, देखो ! छोटे बालकों का पोपण अकेले दूध से होता है उस का हेतु यही है कि - दूधमें स्वाभाविक नियमानुसार स्वभावसिद्ध क्षार मौजूद है, शरीर के सब भागों की रचना और उन की पुष्टि क्षार से ही होती है इसलिये शरीर के लिये जितने क्षार की आवश्यकता है उतना क्षार खुराक के साथ अवश्य लेना चाहिये, क्या पाठकगण नहीं जानते हैं कि-शाक में घृत, मिर्च, १- शहर शब्द से यहां मिश्री का ग्रहण करना चाहिये ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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