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________________ चतुर्थ अध्याय । १७९ नाग तक रेत तथा कोयलों का भुरका ( चूरा ) भर देना चाहिये और उस मटकी के ऊपर एक दूसरी मटकी पानी से भर कर रखना चाहिये तथा उस पानीवाली मटकी की पेंदी में भी एक छिद्र करके उसमें डोरा पोकर ( पिरो कर ) लटकता हुआ रखना चाहिये, इस डोरे के द्वारा पानी टपक २ कर रेत तथा कोयलेवाली नीचे को मटकी में गिरेगा, इस ( रेत तथा कोयलेवाली ) मटकी के नीचे एक तीसरी मटकी और भी रखना चाहिये, क्योंकि बीच की मटकी की पेंदी में स्थित बारीक छिद्रों के द्वारा छन कर स्वच्छ पानी उसी ( सब से नीचेकी तीसरी ) मटकी में जमा होगा, बस वही पानी पीने के उपयोग में लाना चाहिये । पानी का औषध रूप में उपयोग । जैसे खराब पानी बहुत से रोगों को उत्पन्न करता है उसी प्रकार पानी बहुत से रोगों को मिटाने में औषध का भी काम देता है, अशुद्ध पानी से उत्पन्न होनेवाले कुछ रोगों को पहिले बतला चुके हैं, वे रोग पीने के पानी को शुद्ध कर उपयोग में लाने से रुक सकते हैं, इसविषय में इस बात का जानना बहुत अबश्यक है कि पानी का औषधरूप में उपयोग उस के शीते और उष्ण गुण के द्वारा होता है, इसका अब संक्षेप से वर्णन करते हैं: - ठंडे पानी के गुण ये हैं कि ठंडा पानी रक्तस्तम्भक है, दाहशामक है और संकोच कारक होने से गिरते हुए खून को बंद कर देता है, गर्मी को शान्त करता है तथा नसों का संकोच कर उन में शक्ति पहुँचाता है, इस लिये यह नीचे लिखे दर्दों में बहुत उयोगी है: १- रक्तस्राव (खून का गिरना ) - जब नकसीर गिरती हो तब तालु पर रंदे पानी की धारा के डालने से रक्त का गिरना बंद हो जाता है, यदि ऐसा करने से रुधिर का गिरना बंद न हो तो नाक में ठंढे पानी के छींटे अथवा पिचकारी के मारने से उसी बख्त बन्द हो जाता है ! से गिरते हुए रुधिर पर ठंडे पानी से भिगो कर वस्त्र की पट्टी बांध देने से रुधिर का गिरना एकदम बन्द हो जाती है, इस लिये तलवार आदि के घाव में भीगी हुई पट्टी बांध देने से बहुत लाभ होता है, अतः जब घाव वा जखम से लोहू गिरता १- रेल में यात्रा करते समय बहुत से लोगों ने स्टेशनों पर एक तिपाईपर रक्खे हुए तीन बड़ों को यः देखा होगा वह यही किया है || २ शीत गुण के द्वारा जो पानी का औषधरूप में उपयोग होता है उसे शीतोपचार कहते हैं, तथा उष्ण गुण के द्वारा जो उस का औषधरूप में उपयोग होता है उसे उष्णोपचार कहते हैं ।। ३- देखो - जब हाथ में चाकू आदि कोई हथियार लग जाता है तब प्रायः पानी से भिगोकर वस्त्र की पट्टी बांध देते हैं, सो यह रीति बहुत उत्तम है ।। ४-६ भी २ ऐसा भी होता है कि चोट आदि के लगने पर खून नहीं निकलता है, किन्तु खून के जाने से वह स्थान नीला पड़ जाता है, ऐसी दशा में भी उस पर जल्का भीगा हुआ वस्त्र बांधे रखने से जमा हुआ खून बिखर जाता है तथा दर्द मिट जाता है || Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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