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________________ चतुर्थ अध्याय । १७५ ऋतु के अनुसार पानी का उपयोग । और हेमन्त तथा शिशिर ऋतु में सरोवर और तालाव का पानी हितकारी है, वसन्त ऋतु में कुंए बावड़ी तथा पर्वत के झरने का पानी उत्तम है, वर्षा ऋतु में अमरिक्षजल अर्थात् बरसात की धारा से छान कर लिया हुआ अथवा कुँए का पानी पीने के लायक होता है तथा शरद ऋतु में नदी का पानी और जिस जलाशय परस दिन सूर्य की उष्ण किरणें पड़ती हों तथा रात्रि में चन्द्रमा की शीतल किरती हों उस जलाशय का पानी हितकारक है, क्योंकि - शरद् ऋतु का ऐसा पानी अन्तरिक्षजल के समान गुणकारी, रसायनरूप, बलदाता, पवित्र, ठंडा, हलका और अमृत के समान है । वैद्यकशास्त्र के एक प्राचीन माननीय आचार्य का ऋतुओं में जल के उपयोग के विषय में यह कथन है कि-पौर मास में सरोवर का, माघमास में तालाव का, फागुन कुँए का, चैत्र में पहाड़ी कुण्डों का, वैशाख में झरनों का, जेठ में पृथिवी को भी अपने बल प्रवाह से फाड़ कर बहनेवाले नालों का, आपाड़ में कुँए का, श्रावण में अन्तरि का, भाद्रपद में कुँएका, आश्विन में पहाड़ के कुण्डों का और कार्त्तिक तथा मार्गशीर्ष (मिम्सिर ) में सब जलाशयों का पानी पीने के योग्य होता है । राब पानी से होनेवाले उपद्रव । खर व पानी से अनेक प्रकार के उपद्रव होते हैं जिन का परिगणन करना कठिन नहीं किन्तु असंभव है, इस लिये उन में से कुछ मुख्य २ उपद्रवों का विवेचन करते हैं - इस बात को बहुत से लोग जानते हैं कि कई एक रोग ऐसे हैं जो कि जन्तुओं से उत्पन्न होते हैं और जन्तुओं को उत्पन्न करनेवाला केवल खराब पानी ही है । पृथिवी के योग से पानी में खार मिलने से वह ( पानी ) मीठा और पाचनशक्तिवर्धक (बढ़ानेवाला ) होता है, परन्तु यदि पानी में क्षार का परिमाण मात्रा से अधिक बढ़ जाता है तो वही पानी कई एक रोगों का उत्पादक हो जाता है. जब पानी में सड़ी हुई वनस्पति और मरे हुए जानवरों के दुर्गन्धवाले परमाणु मिल जाते हैं तो स्वच्छ जल भी बिगड़ कर अनेक खराबियों को करता है, उस बिगड़े हुए पानी से होनेवाले मुख्य मुख्य ये उपद्रव हैं:१-ज्वर ठंड देकर आनेवाले ज्वर का, विषमज्वर का तथा मलेरिया नाम की हवा से उत्पन्न होनेवाले ज्वर का मुख्य कारण खराब पानी ही है, क्योंकिदेखो ! विकृत पानी की आर्द्रता से पहिले हवा बिगड़ती है और हवा के बिग ने से मनुष्य की पाचनशक्ति मन्द पड़ कर ज्वर आने लगता है, ठंढ देकर आने राला ज्वर प्रायः आश्विन तथा कार्त्तिक मास में हुआ करता है, उस का १- यह मलेरिया से उत्पन्न होनेवाला ज्वर उक्त मासों में मारवाड़ देशमें तो प्रायः अवश्य ही होता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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