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________________ चतुर्थ अध्याय । १७३ आज कल के बहुत से पढ़े लिखे नई रोशनीवाले यह कहते हैं कि-"शहरों के बाहर तो दूर २ से पानी की नहरें राजाओं ने बनवाई थीं, इस का तो इतिहास, परन्तु नल किसी राजा ने भी नहीं लगवाया था, क्योंकि-इस का कोई सबूत नहीं मिलता है इत्यादि" परन्तु यह उन लोगों का बड़ा भ्रम है, क्योंकिदेखो संसार में हर एक विद्या अनादि काल से चली आती है, यह दसरी बात है, कि-कोई विद्या किसी जमाने में लुप्त हो जाती है और कोई प्रकट हो जाती है, इस समयमें सर्कार ने प्रजा के सुख के लिये तथा अपने स्वार्थके लिये नल बनवाने का प्रयत्न अच्छा किया है तथा और भी अनेक अतिलाभदायक पदार्थ बनाये हैं जिन को देख कर उन के उद्यम और उन की बुद्धि की जितनी प्रशंसा की जावे वह थोड़ी है, परन्तु इस से यह नहीं समझ लेना चाहिये कि-इन्हों ने जैसा कया है वैसा संसार में पहिले कभी किसी ने नहीं किया था, क्योंकि-हर एक टि या अनादि है, हां समय पाकर उस का रूपान्तर हो जाता है अथवा लुप्तप्राय हो जाती है, नल के विषय में जो उन लोगों का यह कथन है कि-इस का कोई सबूत वा इतिहास नहीं मिला है, सो बेशक उन लोगों को इस का सबूत वा इतिहास नहीं मिला होगा परन्तु देशाटन करनेवाले और प्राचीन इतिहासों के वेत्ता लोग तो इस का प्रमाण प्रत्यक्ष ही बतला सकते हैं, देखिये-श्रेणिक राजा के समय में मगध देश में राजगृह नामक एक नगर था जो कि वःत ही रौनकपर था, उस नगर में श्रेणिक राजा के पुत्र अभयकुमार मन्त्री ने सम्पूर्ण नगर की प्रजा के हित के लिये ऐसी बुद्धिमानी से नल बनवाया था कि जिस को देखकर अच्छे २ बुद्धिमान् लोगों की भी बुद्धि काम नहीं देती थी (आश्चर्य में पड़ जाती थी) अब भी उस राजगृह नगर के स्थान में एक छोटा सा ग्राम है तथा उक्त मन्त्री की बुद्धिमानी का चिह्न अभीतक वहां मौजूद है अर्थात वहां बहुत से कुण्ड बने हुए हैं और उन में पहाड़ के भीतर से गर्म पानी सदा आता है, एक सातधारा का भी कुण्ड है और वे सातों धारायें सदा उस कुण्ड । गिरती रहती हैं, इस पर भी आश्चर्य यह है कि--उन कुण्डों में पानी उतने का उनना ही रहता है, इस स्थान का विशेष वर्णन क्या करें, क्योंकिवहां की असली कैफियत तो यहां जाकर नेत्रों से देखने ही से टीक रीति से मालूम हो सकती है, वहां की कैफियत को देख कर अंग्रेजों की भी अक्ल हैरान हो गई है अर्थात् आजतक अंग्रेजों को यह भी पता नहीं लगा है कि-यह पानी कहां से आता है। इसी प्रकार आगरे में भी ताज़ बीवी के रौजे में एक फुहारा ऐसा लगा हुआथा कि वह अष्ट प्रहर ( रात दिन ) चला करता था और हौद में पानी उतने का उतना ही रहता था उस की जांच करने के लिये अंग्रेजों ने उसे तोड़ा परन्तु उस का कुछ भी पता न लगा और फिर वैसा ही बनवाना चाहा लेकिन वैसा फिर बन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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