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________________ चतुर्थ अध्याय । १५७ मैल शास के मार्ग से निकल कर उस पानी में समा गया है, इसी प्रकार से सँकड़े कोठे आदि मकान में बहुत से मनुष्यों के इकट्ठे होने से एक दूसरे के फेफसे से निकली हुई अशुद्ध हवा और गन्दे पदार्थों को वारंवार सब मनुष्य अपने मुंह में श्वास के मार्ग से लेते हैं कि जिस से जूटे पानी की अपेक्षा भी इससे अधिक खराबी उत्पन्न हो जाती है, एवं गाय, बैल, बकरे और कुत्ते आदि जनाका भी अपने ही समान श्वास के संग ज़हरीली हवा को बाहर निकालते हैं और श द्व हवा को विगाड़ते हैं । २-त्वचा में से छिद्रों के मार्ग से पसीने के रूप में भी परमाणु निकलते हैं वे भी हवः को विगाड़ते हैं। ३-वराओं के जलाने की क्रिया से भी हवा विगड़ती है, बहुत से लोग इस बात को सुन के आश्चर्य करेंगे और कहेंगे कि जहां जलता हुआ दीपक रक्खा जाता है थवा जलाने की क्रिया होती है वहां की हवा तो उलटी शुद्ध हो जाती है, यहां की हवा बिगड़ कैसे जाती है ? क्योंकि-प्राणवायु के विना तो अंगार सुलगेगा ही नहीं इत्यादि, परन्तु यह उन का भ्रम है-क्योंकि-देखो दीपक को यदि एक सँकड़े वासन में रखा जाता है तो वह दीपक शीघ्र ही बुझ जाता है, क्योंकि-उस बासन का सब प्राणवायु नष्ट हो जाता है, इसी प्रकार संकडे घर में भी बहुत से दीपक जलाये जावें अथवा अधिक रोशनी की जावे तो वहां का प्राणवायु पूरा होकर कार्यानिक एसिड ग्यस (जहरीली वायु) की विशेषता हो जाती है तथा उस घर में रहनेवाले मनुष्यों की तबीयत को बिगाड़ती है, परन्तु ऐसी बातें कुछ कठिन होने के कारण सामान्य मनुप्योंकी समझ में नहीं आती हैं और समझ में न आने से वे सामान्य बुद्धि के पुरुष हवा के बिगड़ने के कारण को ठीक रीति से नहीं जाँच सकते हैं, और मंकीर्ण स्थान में सिगड़ी और कोयले आदि जला कर प्राणवायु को नष्ट कर अनेक रोगों में फंस कर अनेक प्रकार के दुःखों को भोगा करते हैं। सम्र्ण प्रमाणों से सिद्ध हो चुका है कि-सड़ी हुई वस्तु से उड़ती हुई जहरीली त्था दुर्गन्धयुक्त हवा भी स्वच्छ हवा को बिगाड़कर बहुत खराबी करती है, देखो! जब वृक्ष अथवा कोई प्राणी नष्ट हो जाता है तब वह शीघ्र ही सड़ने गता है तथा उस के सड़ने से बहुत ही हानिकारक हवा उड़ती है और उस के रजःकण पवन के द्वारा दृरतक फैल जाते हैं, इस पर यदि कोई यह कहे कि-सही हुई वस्तु से निकल कर हवा के द्वारा कोसों तक फैलते हुए वे पर ५-प्रथक मनुष्य के शरीर में से २४ घण्टे में अनुमान से ३० औंस पसीने के परमाणु बाहर निकलते हैं ।। २-इमी लिये जैनसूत्रकारों ने जिस घर में मुर्दा पड़ा हो उस के संलग्न में सौ हाथ तक मृतक माना है, परन्तु यदि बीच में रास्ता पड़ा हो तो सूतक नहीं माना है, क्योंकि-बीच में रास्ता होने से दुर्गन्ध के परमाणु हवा से उड़ कर कोसों दूर चले जाते हैं । १४ जे. सं. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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