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________________ १५४ जैनसम्प्रदायशिक्षा । रूप से आकाश में मिल जाता है तथा वह पीछे सदैव ओस हो हो कर अरता है, यद्यपि ओस आठों ही पहर झरा करती है परन्तु दो घड़ी पिछला दिन चाकी रहने से लेकर दो घड़ी दिन चढ़नेतक अधिक मालूम देती है, क्योंकि दो घड़ी दिन चढ़ने के बाद वह सूर्य की किरणों की उप्मा के द्वारा सूख जाती है, वे ही कण सूक्ष्म परमाणुओंके स्थूल पुद्गल बंधकर अर्थात् बादल बन कर अथवा धुंअर होकर बरसते हैं, यदि हवा में पानी के परमाणु न होते तो सूर्य के तापकी गर्मी से प्राणियों के शरीर और वृक्ष वनस्पति आदि सब पदार्थ जल जाते और मनुष्य मर जाते, केवल यही कारण है कि-जहां जलकी नदी दरियाव और वन-पति बहुत हैं वहां वृष्टि भी प्रायः अधिक होती है तथा रेतीके देश में कम होती है। यद्यपि यह दूसरी बात है कि-प्राणियों के पुण्य वा पाप की न्यूनाधिकता से कर्म आदि पांच समवाथों के संयोगसे कभी २ रेतीली जमीन में भी बहुत वृष्टि होती है और जल तथा वृक्ष वनस्पति आदि से परिपूर्ण स्थान में कम होती वा नहीं भी होती है, परन्तु यह केवल स्याद्वाद मात्र है, किन्तु इस का नियः तो वही है जैसा कि-ऊपर लिख चुके हैं, यद्यपि हवाका वर्णन बहुत कुछ विस्तृत हैपरन्तु ग्रन्थविस्तार भयसे उस सब का लिखना अनावश्यक समझते हैं, इन के विषय में केवल इतना जान लेना चाहिये कि-योग्य परिमाण में ये चारों ही पदार्थ हवामें मिले हों तो उस हवा को स्वच्छ समझना चाहिये और उसी स्वच्छ हवासे आरोग्यता रह सकती है। हवाको बिगाड़नेवाले कारण । स्वच्छ हवा किस रीति से बिगड़ जाती है-इस बात का जानना बहुत ही आवश्यक है, यह सब ही जानते हैं कि-प्राणों की स्थिति के लिये हवा की अन्यन्त आवश्यकता है परन्तु ध्यान रखना चाहिये कि-प्राणों की स्थिति के लिये केवल हवा की ही आवश्यकता नहीं है किन्तु स्वच्छ हवाकी आवश्यकता है, क्योंकिबिगड़ी हुई हवा विप से भी अधिक हानिकारक होती है, देखो! संसार में तिने विष हैं उन सब से भी अधिक हानिकारक बिगड़ी हुई हवा है, क्योंकि इस (बिगड़ी हुई) हवा से सहस्रों लक्षों मनुष्य एकदम मर जाते हैं, देखो! कुछ वर्ष हुए तब कलकत्ते के कारागृह की एक छोटी कोठरी में एक रात के लिये ४६ आदमियों को बंद किया गया था उस कोठरी में सिर्फ दो छोटी २ खिड़की थीं, जब सवेरा हुआ और कोठरी का दर्वाजा खोला गया तो सिर्फ २३ मनुष्य जीते निकले, बाकी के सब मरे हुए थे, उन को किसने मारा ? केवल खराब हवान ही १-इस पर यदि कोई मनुष्य यह शंका करे कि-सिर्फ २३ मनुष्य भी क्यों जीते निकले. तो इस का उत्तर यह है कि-१४६ आदमियों के होने से श्वास लेनेके द्वारा उस कोठरीकी हव विगड़ गई थी, जब उन में से १२३ मर गये, सिर्फ २३ आदमी वाकी रह गये, तब २३ के वास्ते वह स्थान श्वास लेने के लिये काफी रह गया, इसलिये वे २३ आदमी बच गये।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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