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________________ १४४ जैनसम्प्रदायशिक्षा । चतुर्थ अध्याय । प्रथम प्रकरण । वैद्यक शास्त्र की उपयोगिता । मंगलाचरण | दोहा - श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि ॥ ty रक्षणके नियम अब, कहत सुनो चितधारि ॥ १ ॥ शरीर की रचना और उस की क्रिया को ठीक २ नियम मैं रखने के लिये शरीर संरक्षण के नियमों और उपयोग में आनेवाले पदार्थों के गुण और अव गुण को जान लेना अति आवश्यक है, इसीलिये वैद्यक विद्या में इस विभाग को प्रथम श्रेणी में गिना गया है, क्योंकि शरीर संरक्षण के नियमों के न जानने से तथा पदार्थों गुण और अवगुण को विना जाने उन को उपयोग में लाने से अनेक प्रकार के रोगों की उत्पत्ति होजाती है, इस के सिवाय उक्त विषय का जानना इसलिये भी आवश्यक है कि अपने २ कारण से उत्पन्न हुए रोगों की दशा में उन की निवृत्ति के लिये यह अद्भुत साधनरूप है, क्योंकिरोगदशा में पदार्थों का यथायोग्य उपयोग करना ओषधि के समान बरन उस से भी अधिक लाभकारक होता है, इस लिये प्रतिदिन व्यवहार में आनेवाले वायु. जल और भोजन आदि पदार्थों के गुण और अवगुणों का तथा व्यायाम और निद्र आदि शरीर संरक्षण के नियमों का ज्ञान प्राप्त करने के लिये प्रत्येक मनुष्पी अवश्य ही उद्यम करना चाहिये । पुरुष शरीरसंरक्षण के नियम - बहुधा दो भागों में विभक्त ( बँटे हुए) हैं आता है, स को न आने देना तथा आये हुए रोग को हटा देना, इस प्रत्येक भागमें सदा रक्षा मत के अनुसार उद्यम और कर्मगति का भी सञ्चार रहा हुआ है, जैसे रोग नहीं सर्वदा नीरोगता ही रहे, रोग न आने पावे, इस विषय के साधन को काकड़ा ), उस की प्राप्तिके लिये उद्यम करना तथा उस को प्राप्त कर उसी के गलसुआ वर्ताव करना, इस में उद्यम की प्रबलता है, इस प्रकार का वर्ताव करते : (ज्वरयदि रोग उपस्थित हो जावे तो उस में कर्म गतिकी प्रबलता समझनी चोपूताने इसी प्रकार से कारणवश रोग की उत्पत्ति होनेपर उसकी निवृत्तिके लिये एक को उपायों का करना उद्यमरूप है परन्तु उन उपायोंका सफल होना वा न होनाहिये, गति पर निर्भर है। महो गों से १ - चरण कमलों की धूलि ॥ २- दर्पण ॥ ३- शरीर ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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