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________________ १०० जैनसम्प्रदायशिक्षा। स्त्रियों को उचित है कि-अनियमित समय पर रजोदर्शन होने के कारणोंसे अपने को पृथक् रक्खें (बचाये रहें) क्योंकि गर्भाधान के लिये रजोदर्शनका नियमित समय पर होना ही आवश्यक है, जिन स्त्रियों के नियमित समय पर बराबर रजोदर्शन होता है तथा नियमित रीति पर उसके चिह्न दीख पड़ते हैं. एवं उसकी अन्दर की स्थिति उसका दिखाव और बन्द होना आदि भी नियमित हुआ करते हैं. उन्हीं के गर्भस्थिति का संभव होता है, नवल (नवीन) वधू के रजोदर्शन के प्राप्त होने के पीछे तीन या चार वर्ष के अन्दर गर्भ रहता है और किन्हीं स्त्रियों के कुछ विलम्ब से भी रहा करता है। रजोदर्शन आने के पहिले होनेवाले चिन्ह । जब स्त्री के रजोदर्शन आनेवाला होता है तब पहिले से कमर में पीड़ा होती है, पेंडू भारी रहता है, किसी २ समय पेंडू फटने सा लगता है, शरीर में कोई भीतरी पीड़ा हो ऐसा मालूम होता है, शरीर बेचैन रहता है, सुस्ती मालूम होती है, अल्प परिश्रम से ही थकावट आ जाती है, काम काज में मन नहीं लगता है, पड़ी रहने को मन चाहता है, शरीर भारी सा रहता है दस्त की कब्जी रहती है, किसी २ के वमन और माथे में दर्द भी हो जाता है तथा जब रजोदर्शन का समय अति समीप आ जाता है तब मन बहुत तीव्र हो जाता है, इन चिह्नों में से किसी को कोई चिह्र मालूम होता है तथा किसी को कोई चिह्न मालूम होता है. परन्तु ये सब चिह्न रजोदर्शन होने के पीछे किन्हीं के धीमे पड़ जाते हैं तथा किन्हीं के बिलकुल मिट जाते हैं, कभी २ यह भी देखा जाता है कि-कई कारणोंसे किन्हीं स्त्रियों को रजोदर्शन होने के पीछे एक वा दो दिनतक नियमके विरुद्ध दिन में कई वार शौच जाना पाता है। योग्य अवस्था होने पर भी रजोदर्शन न आने से हानि । स्त्री के जिस अवस्था में रजे दर्शन होना चाहिये उस अवस्था में प्रतिमास रजोदर्शन होने के पहिले जो चिह होते हैं वे सब चिह्न तो किन्हीं २ स्त्रियों को मालूम पड़ते हैं परन्तु वे सब चिह्न दो या तीन दिन में अपने आप ही शान्त हो जाते हैं इसी प्रकार से वे सब चिह्न प्रतिमास मालूम होकर शान्त हो जाया करते हैं. परन्तु रजोदर्शन नहीं होता है इस प्रकार से कुछ समय बीतने पर इस की हानियां झलकने लगती हैं अथात थोड़े समय के बाद माथे में दर्द होने लगता है, कोटे में विगाड़ मालूम पड़ता है, दस्त बराबर नहीं आता है और धीरे २ शरीर में अन्य विकार भी होने लगते हैं, अन्त में इस का परिणाम यह होता है है कि हिष्टीरिया (उन्माद ) और क्षय आदि भयंकर रोग शरीर में अपना घर बना लेते हैं। १-अनियमित समय पर रजोदर्शन आने के कारण आगे लिखेंगे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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