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________________ ( ४० ) कटारिया. हमारे गच्छके है वासक्षेप हम देवेंगें. तकरार यहांतक बड गई की जेसलमेरका राजा गजसिंहजी तक पहुंच गई राजाने दोनों से साबुति पुच्छी इसपर खरतरोंने तो जबानी जमाखरच जो यति ने मुक्तावलिमें लिखा वह कह सुनाया तब कमलागच्छयतियोंने ariat सरू अर्थात् रत्नप्रभसूरिने अठारा गोत्रोंमे दूसरा गोत्र स्थापन कीया वहांसे सप्रमाण वंसावलियों राजा के आगे धरदी. इसपर न्याययुक्त इन्साफ दीया कि बाफरणा कमलागच्छके श्रावक है वासक्षेप देना कमलागच्छवालोंका हक्क है जब कमलागच्छीय यतिजी बासक्षेप दीया संघमे साथे गये पटवोंने भी उन यतियोंका अच्छा सत्कार कीया इत्यादि रामलालजीने दो प्रकारके बाफणा लिख विचारे अज्ञ बाफणोंकों धोखा दिया है बाफणा रत्नप्रभसूरिके प्रतिबोधित कमलागच्छके श्रावक है विशेष देखो " जैन जाति महोदय 93 ( १२ ) कटारिया कोटेचा रत्नपुरा । वा० लि० वि० स० १०२१ में सोनीगरा चौहान राजा रत्नसिंहने रत्नपुरा बसाया उसकी पांचवी पीढमे वि० स० ११८१ का प्राखातीजने धनपाल राजा पाट बेठा. वह सिकार खेलनेको गया एक झाड निचे सुत्ता हुवाको सांप काटा. दादाजी झाडा दे विषोत्तार जैन बनाया उनके कुलमें झाझणसी हुवा वह दिल्लि बादशाहका मंत्री था एकदा शत्रुंजय गया वह आरति की बोलीमें मालवाकी आमंद ६२ लक्षकी दे दी वह बात बादशाहको खबर हुई तब झांझणसी अपने हाथसे कटारा खाया वास्ते कटारीया कहलाया इत्यादि. समालोचना - अव्वलतो १०२१ में चौहानोके साथ सोनीगकी उपाधि ही नहींथी संचेतीयोंकी समालोचना में हम सप्रमाण लिख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034521
Book TitleJain Jati Nirnay Prathamank Athva Mahajanvansh Muktavaliki Samalochana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1927
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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