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________________ ( ३५ ) ही अध्ययन करना चाहिये अतएव शास्त्रों का, आचार्यों का, गुरु जनों का यह सतत उपदेश होता है कि "यश्चेदं गुरुपरंपरयाधीते, स सततं सुखी भवतीति" अर्थात गुरुगम से जो शास्त्र का अध्ययन करता है, वह हमेशा सुखी होता है । उसके साथ ही और भी एक बात ध्यान में रखनी चाहिये कि शास्त्रों में तथा काव्यों में ही क्या ? परंतु साधारण बोल चाल में भी शब्द गूढ, अर्थ गूढ और शब्दार्थ गूढ भाव गूढ, तात्पर्य गूढ ऐसे अनेक प्रकार के श्लोक, सूत्र वाक्य या करते हैं । वहां बहुत ही विवेक के साथ अर्थ किया जाता है । जरासा भी पैर फिसल गया कि अनभिज्ञ की पदवी सिरपर सवार ही है । एक साधारण नीति के श्लोक का उदाहरण देते हैं-बुद्धिमान को अपना समय किस प्रकार बिताना चाहिये ? इसके लिये नीतिकार उपदेश दे रहे हैं कि: प्रातर्द्यात प्रसंगेन, मध्याह्न े स्त्रीप्रसंगतः । रात्रौ चौरप्रसंगेन, कालो गच्छति धीमताम् ॥१॥ इसका श्रूयमाण अर्थ कोशाम्बीजी और उनके सहोदरों के मत से यही होगा कि प्रातः काल में जूवा खेलकर और मध्याह्न काल में स्त्रियों के साथ काम क्रोडा सेवन कर और रात्रि के समय चोरों में मिलकर चोरी आदि के द्वारा बुद्धिमान जीव अपना समय बिताता है । विचार कीजिये कि जुवारी, जार और चोरों के लिये कितना सुन्दर प्रमाण है ? उन लोगों के लिये एकदम आज्ञा ही मिल गई । परन्तु विवेको जीव विचार करेंगे कि इस श्लोक में धीमताम् शब्द पड़ा है, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034518
Book TitleJain Darshan Aur Mansahar Me Parsparik Virodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kaushambi
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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