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________________ ( ३३ ) फल हैं, उनको हमारे लिये बनाये हैं उसको नहीं लाना, ऐसा लिखकर “मज्जारकड़े कुक्कुडमंसे तमाहराहि, एएणं अट्ठो” इसका अर्थ करते हैं मार्जारो वायुविशेषस्तस्योपशमनाय कृतम् सहमतम् किं मार्जारकृतम् । अन्येत्वाहुः मार्जारो विडालिकाभिधानो वनस्पति विशेषस्तेन कृतं भावितं यत्तत्तथा किन्तत् ? इत्याह कुक्कुटकमांसकम् बीजपूरकं कटाहम् , आहराहि निवेद्यत्वात् अर्थात मार्जार नामका कोई वायु विशेष है, उसकी शान्ति के लिये अथवा मार्जार याने बिलारीकन्द नामक औषध, उससे संस्कार किया हुवा जो कुक्कुटमांस अर्थात् बिजौरापाक उसको लाओ क्यों कि वह निर्दोष है। इस स्थल पर टीकाकार भी शाकाहार ही सिद्ध करते हैं। आम्नाय परम्परा, प्ररूपणा कोष और वैद्यक ग्रंथ भी शाक अर्थ बतला रहे हैं । फिर “ मुरारेस्तृतीयः पन्थाः " इस न्याय से कोशाम्बीजी और उनके सहपाठियों को मांसाहार अर्थ अपनी जातीय प्रथा और व्यक्तिगत मान्यता के आधार से ही . मिला होगा। _ पूर्वाचार्यों ने औषधि के नाम-श्राकृति, गुण, वीर्य, देश, वर्ण आदि के आधार से रक्खे हैं। वही परम्परा आज तक चली श्रा रही है। आकृति प्रधान वनस्पति “काकजंघा" यह कौवेकी जंघा के आकार की होती है, देखिये भाव प्रकाश पृष्ट २२७ श्लोक २३३ । गुण प्रधान वनस्पति मर्कटी का स्पर्श होते ही शरीर में इतनी खाज उत्पन्न होती है कि मनुष्य बन्दर के समान नाचने लगता है, अतः इसका नाम मकटी । भाव प्रकाश पृष्ट २०५ श्लोक १२२ वोर्य प्रधान वनस्पति “अमृता" (हरोतको) इसमें इतना गुण है कि शास्त्रोक्त विधि के अनुसार सेवन करने से मनुष्य अजर अमर अर्थात चिरायु जरा पलित रहित हो जाता है, अतः Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034518
Book TitleJain Darshan Aur Mansahar Me Parsparik Virodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kaushambi
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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