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________________ ( २८ ) ऐसा अर्थ करने वाले अज्ञानी लोगों को इतना नहीं सूझता है कि जिन भगवान वीर प्रभु ने अपने ममय में कन्याकुमारी से हिमालय तक तथा पूर्व समुद्र से पश्चिम समुद्र तक अहिंसा का झंडा फहरा दिया था, मनुष्य ही नहीं, किन्तु प्राणी मात्र के साथ मैत्री भाव की उद्घोषणा की थी, जो भगवान् निश्चय नयकी अपेक्षा व्यवहार नयको पालन करने के लिये स्थान स्थान पर जोर दे रहे हैं वे ही धर्म प्राण, धर्म रक्षक वीर प्रभु स्वयं मांस का सेवन किस प्रकार करेंगे? . इन कुपण्डितों को जरा विचार करना चाहिये कि उस समय वैदिक सम्प्रदाय के साथ पूरी टक्कर लेकर भगवान वीर प्रभु ने अहिंसा की पताका फहराई । वैदिक सम्प्रदाय में मनुजी ने इन आठ प्राणियों को हिंसक बताया है यथा अनुमन्ता विशसिता. निहंता क्रयविक्रयी। संस्कर्ता चोपहर्ता च, खादक श्चति घातकाः॥१॥ अर्थात् (१) पशु को मारने की आज्ञा देने वाला (२) पशु के टुकड़े करने वाला (३) मारने वाला (४) बेचने वाला (५) खरीदने वाला (६) पकाने वाला (७) परोसने वाला और (८) खोने वाला ये आठों घातक है । यदि इन आठों में से एक भी स्थल पर भगवान चूक जाते, तो उनकी अहिंसा का विकास इतना होता क्या ? और वह अहिंसा आजतक टिकती क्या ? जिस तरह मांसाहारी बौद्धों का नाम-निशान हिन्दुस्तान से शंकराचार्य के समय में मिट गया, उसी तरह जैनों का भो अस्तित्व नहीं रहता। परन्तु जैनों ने सत्य अहिंसा का पालन करके वैदिक संप्रदाय के साथ टक्कर लेकर के आर्य भूमि में अपना अस्तित्व रख लिया । सारांश यह कि भगवती सूत्र के अन्दर जो मांस अर्थ भासित हो रहा है वह सूत्रार्थ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034518
Book TitleJain Darshan Aur Mansahar Me Parsparik Virodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kaushambi
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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