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________________ ___ इस लेख को लिखते समय एक जिज्ञासु सज्जन ने जिज्ञासा की कि अस्थि शब्द का अर्थ तो हड्डी होता है, और अनिमिष तथा अस्तिक नाम वाले वृक्ष तो आज कोई देख नहीं पड़ते, फिर यह अर्थ कैसा माना जाय ? उनके दो प्रश्नों का उत्तर तो पन्नवणाजी सूत्र के पहले पद में वनस्पति के प्रकरण में उसी अवसर पर मिलते हैं । पनवणाजी सूत्र का मूल पाठ इस प्रकार है:. से किं तं रुक्खा ? दुविहा पएणत्ता, तंजहा एगट्ठिया य बहुबीयगा य । से किं तं एगट्टिया ? अणेगविहा पन्नत्ता, तंजहाणिबंब जंबुकोसंब साल अंकुल्ल पोलु सेलूय । इत्यादि-सेत्तं एगट्टिया पर्यन्त ॥ ____ यहां पर अस्थि शब्द गुठली अर्थ में प्रयुक्त हआ है। इसी तरह " अस्थिय " अस्तिक नामक वृक्ष अर्थ के लिये पन्नवणाजी सूत्र के उसी (वनस्पति) प्रकरण में अत्थिय तेंदु कविढे अंबाडग माउलिंग बिल्ले य । श्रामलग फणिस दालिम प्रासोठे उंबर वडे य ।। (बहु बीजक वनस्पति प्रकरण गाथा १५) इसी तरह अनिमिष नामक वनस्पति विशेष है जो आज अनुपलब्धसी प्रतीत हो रही है, उसको मिलाने के लिये तत्तद्देशीय भाषाओं का ज्ञान, संपूर्ण शास्त्र ग्रंथों का वाचनादि का भगीरथ प्रयत्न कीजिये। कण्टक शब्द तो बबूल आदि वृक्षों के तथा वृन्ताक आदि फलों के कांटा अर्थ में प्रसिद्ध ही है। गुरु परम्परा से कोई कोई विद्वान् कण्टक का अर्थ वनस्पतियों के अन्दर जो रेसा (नस) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034518
Book TitleJain Darshan Aur Mansahar Me Parsparik Virodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kaushambi
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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