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________________ [ ७ ] और पृष्ठ २२ पर पार्वती ने लिखा है कि- “हां एक दो चेला चांटा पढ़वा लिया होगा परंतु पंजाबी पीतांबरी तो बहुलता से यूं कहते हैं कि बल्लभविजय पुजेरा साधु संस्कृत बहुत पढ़ा हुआ है परंतु बल्लभ अपनी कृत गप्पदीपकाशमीर नाम पोथी संवत् १९४८ की छपी पृष्ठ १४ में पंक्ति १४ में लिखता है कि लिखने वाली महा मृषावादी सिद्ध हुई यह देखो वैयाकरणी बना फिरता है स्त्रीलिंग शब्द को पुल्लिंग में लिखता है क्योंकि यहां वादिनी लिखना चाहिये था इत्यादि " || परंतु यह नहीं विचारा है कि चेला चांटा नहीं है, बल्कि ढूंढकपंथ के वास्ते कांटा है, जो ऐसा डांटेगा कि याद करोगे । जरा अपने लेख पर ख्याल कर लेती पीछे " वैयाकरणी " बना फिरता है-लिखना ठीक था ! इतनी सी इबारत में कितनी अशुद्धियें है ? जिनके नीचे लकीर का निशान दिया गया है, स्वयं पार्वती देख लेवे ? यदि कोई कसर है तो किसी डाकटर से आंखों का इलाज करा लेवे, हमारी समझ के अनुसार पार्वती के नेत्रों की जरूर दवाई होनी ठीक है क्योंकि आजकल इसको पुरुष भी स्त्री नज़र आते हैं, जो वैयाकरण के स्थान वैयाकरणी लिख दिया है, यह भी एक पार्वती के लिंगज्ञान का नमूना है ! पार्वती को इतना तो सोच करना था कि जिस वल्लभविजय ने मुझे मरद ( ब्रह्मचारी) से औरत (ब्रह्मचारिणी) बना दिया है क्या उससे व्याकरण का इपू " सूत्र भूला हुआ है ? यदि वल्लभविजय को इस बात का पता न होता तो पार्वती को ब्रह्मचारीसे ब्रह्मचारिणी कौन बनाता ! अपनी तरफ से कितनी ही होशीयारी कोई रखे प्रायः छापे की गलती हो जाना संभव है, पार्वती अपनी ही पोथी को देख लेवे कि अशुद्धि शुद्धिपत्र दे भी दिया है फिर भी कितनी 66 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034517
Book TitleJain Bhanu Pratham Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherJaswantrai Jaini
Publication Year1910
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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