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________________ ( ७३ ) तथा सन् १८८४ के छपे सत्यार्थप्रकाश के ४४७, ४८, ४९ पृष्ठ में लिखते हैं : " श्वेतांबरों में से ढूंढिया और ढूंढियों में से तेरहपंथी आदि ढोंगी निकले हैं। ढूंढिये लोग पाषाणादि मूर्ति को नहीं मानते और वे भोजन स्नान को छोड़ सर्वदा मुख पर पट्टी बांधे रहते हैं और जति आदि भी जब पुस्तक बांचते हैं तभी मुख पर पट्टी बांधते हैं अन्य समय नहीं। ( प्रश्न) मुख पर पट्टी अवश्य बांधना चाहिये क्योंकि "वायुकाय " अर्थात् जो वायु में सूक्ष्म शरीर वाले जीव रहते हैं वे मुख के बाफ की उष्णता से मरते हैं और उसका पाप मुख पर पट्टी न बांधने वाले पर होता है इसीलिये हम लोग मुख पर पट्टी बांधना अच्छा समझते हैं । (उत्तर) यह बात विद्या और प्रयक्षादि प्रमाणादि की रीति से अयुक्त है क्योंकि जीव अजर अमर है फिर वे मुख की बाफ से कभी नहीं मर सक्ते इनको तुम भी अजर अमर मानते हो । (प्रश्न) जीव तो नहीं मरता परंतु जो मुख के उष्ण वायु से उनको पीड़ा पहुंचती है. उस पीड़ा पहुंचाने वाले को पाप होता है इसीलिये मुख पर पट्टी बांधना अच्छा है। (उत्तर) यह भी तुम्हारी बात सर्वथा असंभव है क्योंकि पीड़ा दिये विना किसी जीव का किंचित् भी निर्वाह नहीं होसकता जब मुख के वायु से तुम्हारे मत में जीवों को पीड़ा पहुंचती है तो चलने फिरने, बैठने, हाथ उठाने और नेत्रादि के चलाने में भी पीड़ा अवश्य पहुंचती होगी इसलिये तुम भी जीवों को पीड़ा पहुंचाने से पृथक् नहीं रह सलते । (प्रश्न) हां जबतक बन सके वहां तक जीवों की रक्षा करनी चाहिये और जहां हम नहीं बचा सकते वहां अशक्त हैं क्योंकि सब वायु आदि पदार्थों में जीव भरे हुए हैं जो हम मुख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034517
Book TitleJain Bhanu Pratham Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherJaswantrai Jaini
Publication Year1910
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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