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________________ ( २८ ) को चित्तमें धारण करके बहुत देवता और देवी शकेंद्र के पास हाज़र होगये, वोह पाठ यह है :"हदि सुगंतु भवतो, बहवे सोहम्मवासिणो देवा । सोहम्मकप्पवइणो, इणमो वयणं हिअसुहत्थं ॥१ आणवेइणंभो सके तं चेव जाव अंतिअं पाउब्भवह । तएणं ते देवे देवीओअ एअमé सोचाह तुछ जाव हिअया-अप्पेगइआ वंदणवत्तिअं एवं पूअणवत्तिअं, सकारवत्ति सम्माणवत्तिअं दंसणवत्तिअं कोऊहलवत्तिअं जिणेसभत्तिरागेणं अप्पेगइआ सकस्सवयणमणुवट्टमाणा अप्पेगइआ अण्ण मण्ण मणुवट्टमाणा अप्पेगइआ जीअमेअंएवमाइति कट्ट जाव पाउब्भवंति"॥ व्याख्या-हंदि सुणतुं इत्यादि । हंत इति हर्षे सच स्वस्वामिनादिष्टत्वात् जगद्गुरुजन्ममहकरणार्थक प्रस्थानसमारंभाच शृण्वंतु भवंतो बहवः सौधर्मकल्प वासिनो वैमानिका देवा देव्यश्च सौधर्मकल्पपतेरिदं वचनं हितं जन्मांतरकल्याणावहं सुखं तद्भवसंबंधि तदर्थमाज्ञापयति भो देवाः शक्रस्तदेवज्ञेयं यत् प्राक सूत्रे शक्रेण हरिनगमोषिपुर उद्घोषयितव्यमादिष्टं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034517
Book TitleJain Bhanu Pratham Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherJaswantrai Jaini
Publication Year1910
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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