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________________ ( २७ ) .. के सिवाय अन्य कुछ हो सकता ? नहीं ! नहीं : तथा श्रीठाणांगमूत्र के चौथे ठाणे में "दव्य सच्चे" द्रव्य सत्य कहा है। तथा श्री ठाणांगमूत्र के पांचवें ठाणेमें जो आगे को देवता होने वाला होवे उमको " भवियदबदेवा" अर्थात् भावि द्रव्यदेव कहा है। तथा श्रीसूत्रकृतांग सूत्र के दूसरे अध्ययन की १५वीं और १७ वीं गाथा में मोक्ष जाने योग्य भव्यजीव को तथा मुक्ति जाने योग्य साधु को द्रव्य फरमाया है। __ अरे ! ऐसे २ प्रयक्ष सूत्रों के पाठ हैं, फिर भी द्रव्यनिक्षेप को सर्वथा निषेध करना, कितनी शर्म की बात है ? श्री जिनश्वरदेवका द्रव्यनिक्षेप वंदनीय है। श्रीजंबूद्वीपप्रज्ञाप्तसूत्र में श्रीतीर्थङ्कर के जन्मसमय में तथा निर्वाणसमय में प्रकट वंदना नमस्कार करने का पाठ है, वोह वंदना नमस्कार किस निक्षेप को है ? ज़रा पक्षपात की ओट से बाहिर निकलकर विचारना योग्य है, जिससे अन्तरीय खोट निकल जावे, और परमाधार्मिक की चोट से बचा जावे, क्योंकि जन्म समय में (यावत् केवलज्ञान नहीं होता तावत्पर्यन्त) भावनिक्षेप तो नहीं है, द्रव्यनिक्षेप ही है, तथा निर्वाणसमयमें भी भावनिक्षेप नहीं है, केवल तीर्थकर महाराज का शरीरमात्र ही मौजूद है सो द्रव्यनिक्षेप है और दोनों ही समय में वंदना नमस्कार का पाठ है, तो अब विचार करो कि "द्रव्यानक्षेप अवस्तु है,वंदना नमस्कार के लायक नहीं" यह कथन केवल पानी के मथन करने समान निष्फल होगया कि नहीं? जरूर होगया, अन्यथा शास्त्र का कपन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034517
Book TitleJain Bhanu Pratham Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherJaswantrai Jaini
Publication Year1910
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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