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________________ ( २५ ) ' विचारना योग्य है कि तीन सत्यनय - यह किस पद का अर्थ किया है ? क्योंकि पाठ में तो 'सद्द' लिखा है जिसका अर्थ ' शब्द ' होता है और जिनका तात्पर्य यह है कि तीन ' शब्दनय' हैं इससे अर्थापत्ति यह सिद्ध होता है कि प्रथम के चार 'अर्थनय हैं, तात्पर्य यह है कि प्रथम के चार नय अर्थ की प्रधानता रखते हैं, और आगे के तीन नय शब्द की प्रधानता रखते हैं बस इसी बात से पार्वती का चाहा असत्य या अवस्तु शशशृंग होगया ? क्योंकि जो द्रव्य को अवस्तु प्रतिपादन करने का पार्वती ने प्रयास किया सो बिलकुल निष्फल होगया, और अनुयोगद्वार सूत्र में जो अवस्तु कहा है सो सर्वथा द्रव्य को वस्तु नहीं कहा है, अपितु आगम से द्रव्य आवश्यक को अवस्तु कहा है, परन्तु पार्वती ने थोड़ा पाठ मात्र लिखकर दिल में पाप होने से दान देती कपिला दासी की तरह अपने हाथ को पीछे खींच लिया मालूम देता है । तटस्थ - " द्रव्यनिक्षेप अवस्तु नहीं है" क्या दुनिया में सब के सब ही मूर्ख हैं ? नहीं ? नहीं ? विचारशील पुरुष भी दुनियां में बहुत हैं और इसीवास्ते " बहुरत्ना वसुंधरा " कहाती है सो ऐसे सुतरनपुरुषों के उपकारार्थ आगे का पाठ भी लिख दिखाना योग्य है जिससे कि पार्वती की चालाकी भी ज़ाहिर होजावे । विवेचक - लीजिये पूर्वाचार्यकृत अर्थसहितपाठ पढ़िये :तिन्ह सद्दणयाणं जाणए अणुवउत्ते अवत्थू कम्हां जइ जाणए अणुवउत्ते न भवइ "" "" भावार्थ - तीन शब्दनय के मत में जानकार होकर उपयोग रहित होना अवस्तु अर्थात् असम्भव है, क्योंकि यदि जानकार है तो उपयोगरहित नहीं होता है यही बात टीकाकार ने भी कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com :
SR No.034517
Book TitleJain Bhanu Pratham Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherJaswantrai Jaini
Publication Year1910
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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