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________________ जो बालब्रह्मचारी कहता है, वह महामोहनीय कर्म बांधता है ॥ शोक ! महा शोक !! "जैनाचार्या" कहाना क्या योग्य है ? जैनमार्ग में स्त्री को "आचार्य" पदवी किसी सूत्र में नहीं चली है शरमकी बात है कि बड़े बड़े साधुओं के होते हुए भी स्त्रीमात्र को इस प्रकार शास्त्रविरुद्ध पदमदान होता है, परन्तु इसमें कोई आश्चर्य नहीं, अज्ञानीवर्ग का ऐमा ही काम होता है । और यह बात भी सस है कि जो जैसा होता है उसका वैसों के साथ ही मेल होता है मृगा मृगैः संग मनुव्रजंति गावश्च गोभिस्तुरगास्तुरंगैः मूर्खाश्च मूखैः सुधियः सुधीभिः समानशीलव्यसनेषु सख्यम् ॥ १॥ फारसी में भी एक अकलमंद ने कहा है-“कुनद हमजिनस बा हमजिनस परवाज़, कबूतर वाकबूतर वाज़ बाबाज़" । کند هم جنس با هم جنس پرواز * کبوتر با کبوتر باز با باز ___ अस्तु तथापि हमारी तो यही हितोशक्षा है कि अपने सुधारे के वास्ते शास्त्रविरुद्ध बातों को जलांजलि देकर शास्त्रानु सार प्रति करनी योग्य है अन्यथा ," मनस्यन्यद्रचस्यन्यत् क्रियायामन्यदेवहि " यह न्याय हो जावेगा क्योंकि स्त्रीजाति का प्रायः स्वभाव ही होता है कि मन में तो कुछ और गान होता है, वचन से कुछ और ही भान करती है । क्या बत्तीस शास्त्रों में से किसी भी मूत्र में स्त्री को आचार्यपदप्रदान करना फरमाया है ? क्योंकि ढुंढकमतानुयायी लंबे लंबे हाथ करके पुकारते हैं कि हम बत्तीस सूत्रों के अनुसार चलते हैं, बत्तीस सूत्र Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034517
Book TitleJain Bhanu Pratham Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherJaswantrai Jaini
Publication Year1910
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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