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________________ (१.८ ) का फूल या गधे का शृङ्ग बनावेगी ? अमल बात तो यह है कि जैन शैलि के अनुसार नय निक्षेपों का ज्ञान ही पार्वती को नहीं है स्था ही अपनी टांग जानकारी में फंसाती है, देखो ! शास्त्रकार द्रव्यनिक्षेप किसको फरमाते हैं, अतीत अनागत पर्याय के कारण का नाम द्रव्य है :-" दव्वो भावस्स कारणं"। इतिश्री अनुयोगद्वार सूत्र वचनात् । इसवास्ते अरिहंत भगवंत का द्रव्यनिक्षेप उनके माता पिता के रुधिर और वीर्य को ठहराना पार्वती की मूर्खता है, और यदि अरिहंत पदवी का ख्याल किया जावे तो वह तीर्थकर नाम कर्म नामा पुणप्रकृति है । उसका उपादानकारण ज्ञातासूत्र में वर्णन किये बीस स्थानक हैं, नाकि माता पिता का रुधिर और वीर्य, और तीर्थंकर के निक्षेपवर्णन करते २ मूत्ति पर जा उतरना यह भी एक तिीरया चरित्र की चालाकी का नमूना है, इसकी बाबत प्रथम निक्षेपों के वर्णन में विस्तार पूर्वक दृष्टांत माहित लिखा गया है, उस पर विचार करने से स्वयमेव पता लग जावेगा; परंतु केवल डाकीया ( चिट्ठीरसां) वाला काम करने से कुछ भी परमार्थ नहीं मिलेगा, जैसे चिट्ठीरसां डाक की थैली लेकर ग्राम में फिरता है, (लिफाफा) में लिखा समाचार बिलकुल नहीं जान सकता है. इसीतरह गुरुगम्यता टीकादि के विना परमार्थ का मिलना अतीव कठिन है । चिट्ठी पर तो एक ही कागज का परदा पड़ा होता है परंतु सूत्र पर तो अनेक आशय रूप कागज के परदे हैं, जोकि शुद्ध आम्नाय बताने वाला मिले तब ही यथार्थ वांचे जाते हैं, अन्यथा कदापि नहीं। श्रीनदिसूत्र में फरमाया है कि:“सम्मदिछि परिग्गहियाणि मिच्छासुत्ताणि सम्मसुत्ताणि मिच्छादिछि परिग्गहियाणिसम्मसुत्ताणिमिच्छासुत्ताणि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034517
Book TitleJain Bhanu Pratham Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherJaswantrai Jaini
Publication Year1910
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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