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________________ ( ७६ ) प्रयास करवा लाग्या, परंतु फलांणाना छोकराने झीकनो पोशाक अने माराने नहीं एवी रीतनी हठ लइने बेठेली चंचल स्त्रीरोए तेमनी ते इच्छा निष्फल करी कारणके हठमांज रात्री वीती गई। __ इत्यादि ब्रह्मचर्य का वर्णन नहीं किंतु श्रृंगार रस का वर्णन या कुशील का वर्णन, इससे भी अधिक अधिक निर्लज्जता वाला निंदित छपवाया है, उसकी सूरत में महाराज के प्रवेश के वर्णन में क्या आवश्यकता थी ? नहीं, क्योंकि इस वर्णन से परत निवासी श्रावकों की लज्जानेवाली निंदाही साफ मालूम होती है। वास्ते दूसरों की निंदा त्यागकर हर्षमुनिजी को अपनी प्रशंसाही छपवानी युक्त थी, जैसे कि श्रीमोहनचरित्र के पृष्ठ ३५१ में हर्षमुनि जीने छपवाया है कि“षष्ठयां श्रीहर्षमुनिराट् शांतो दांतो वशी कृती। संन्यासकौशलयोतिपन्यासास्पदसंस्कृतः ॥ __ अर्थ—षष्टीने दिवसे शांत ( अंतरिंद्रिय दमन-मनोनिग्रह करनार) दांत ( बायेंद्रियोनो दमन करनार ) तेथीज इंद्रियोने वश राखनार अने कुशल श्रीहर्षमुनिजीने संन्यासमां प्रवीणता सूचक पन्यासपद अपवामां आव्युं । इस विषय में हर्षमुनिजी ने अपनी लंबी चौड़ी प्रशंसा लिखवाकर दिखलाई है परंतु श्रीभगवती सूत्र के योग करानेवाले तथा -सन्यासपद देनेवाले परमोपकारी पन्यास श्रीयशोमुनिजी का नाम केी नहीं लिखवाया, और पृष्ठ ३७६ में लिखवाया है किमुनि व श्राद्धैर्न महाराजैर्दत्तं चास्मा इदं पदं । शास्त्र गोहना मान्यमान्यैर्भगवतीसूत्रैर्दत्तमिदं पदं ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034509
Book TitleHarsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharmuni Gani
PublisherBuddhisagarmuni
Publication Year
Total Pages87
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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