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________________ ( ७४ ) से केशरमुनिजी कठोर गाम में ठहरे थे तो द्वेष से त्रिशंकू आदि लिखवाना गुरुआज्ञा विरोधियों का कर्तव्य क्या बुद्धिमान् नहीं समझ सकते हैं ? क्योंकि ३-४ दिन के बाद श्रीमोहनलालजी महाराज का (काल) मृत्यु का तार हर्षमुनिजी ने केशरमुनिजी को दिया और पत्र तथा आदमी भेज के सूरत बुलाकर पास रक्ते, तो "कठोर गाममांज त्रिशंकुनी पेठे" इत्यादि निरर्थक लेख आपका द्वेषभाव और निंदास्वभाव ही विदित करवा है । क्योंकि गुरु श्रीमोहनलालजी महाराज की आज्ञा से पन्यास श्रीयशोमुनिजी देवमुनिजी कमलमुनिजी आदि शिष्य प्रशिष्य साधुओं विहार करके भरुच तथा श्रीसिद्धाचलजी महातीर्थ की यात्रा को गये, उस वारे में भी हर्षमुनिजी ने श्रीगौतमगणधर का दृष्टांतपूर्वक शास्त्रविरुद्ध निंदा छपवाई है कि-"गुरु के अंत समय में शिष्य विहार करे वह समुद्रतीर के कोठे में डूबने जैसा है, उसकी गुरु सेवा बकरी के गलस्तन की तरह निष्फल है, गुरु से श्रेष्ठ तीर्थ कोई नहीं, तीर्थ की सेवा के लिये विहार करना हो तो गुरु के पास रह कर तीर्थ में श्रेष्ठ श्रीगुरुजी की सेवा करने में अधिक लाभ है, पृथ्वी ऊपर श्रीमोहनलालजी महाराज से श्रेष्ठ कोई सुना नहीं, अपने घर में रहे हुए चिंतामणि रत्न को छोड़ के दूसरे रत्न के लिये विकट अटवी में जाने वाले की इस दुनियाँ में हलकाश होय, यही इम को लाभ है, दूसरा लाभ कुच्छ भी नहीं ।" इस प्रकार शास्त्रविरुद्ध तथा श्रीगुरुमहाराज की आज्ञा से विरुद्ध होकर अपनी प्रतिष्ठा के लिये हर्षमुनिजी ने द्वेषभाव से कपोलकल्पित निदा के अनेक आक्षेप परमोपकारी पन्यास श्रीयशोमुनिजी आदि ६ मुनियों पर कुटिलता से लिखवा कर चरित्र में छपवाये हैं, परन्तु . शास्त्र तथा गुरु की जैसी आज्ञा हो वैसा शिष्य प्रशिष्यादि को हनतना उचित है । वास्ते गुरु के अंत समय में गुरु महाराज की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034509
Book TitleHarsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharmuni Gani
PublisherBuddhisagarmuni
Publication Year
Total Pages87
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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