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________________ ( ७२ ) हो गये हों यदि साधु को रहने योग्य क्षेत्र नहीं मिला तो वृक्ष के नीचे भी रह कर ५० वें दिन पर्युषण अवश्य करना किंतु इस आज्ञा का उल्लंघन करके ८० दिने वा दूसरे भाद्रपद अधिकमास में ८० दिने पर्युषणपर्व उपर्युक्त सूत्र-नियुक्ति-निशीथचूर्णि-आदि आगम पाठों से विरुद्ध करने संगत नहीं है । क्योंकि शास्त्रकारों ने मना लिखी है सो मानना अवश्य उचित है । इत्यलं प्रसंगेन । । इति श्रीपर्युषण मीमांसा समाप्ता । श्रीहर्षमुनिजी आदि मुनियों को विदित हो कि आप लोगों ने उपर्युक्त सिद्धांत पाठों से विरुद्ध ८० दिने पर्युषण आदि तपगच्छ की समाचारी का पक्षपात के कदाग्रह से उक्त सिद्धांत पाठों से संमत ५० दिने पर्युषण आदि खरतरगच्छ की समाचारी करने के लिये गुरु श्रीमोहनलालजी महाराज की आज्ञाका भंग किया और हम लोगों ने उक्त गुरु महाराज की आज्ञा से ५० दिने पर्युषण आदि शास्त्र संमत अपने खरतरगच्छ की समानारी अंगीकार करी यह गुरु श्रीमोहनलालजी महाराज ने अपने संघाड़े में भेद पाड़ा इसी कारण से हर्षमुनिजी ने श्रीमोहनचरित्र के पृष्ठ ४१४ से ४२५ तक आ मारो गच्छ छे इत्यादि आग्रह थी जे संघमां भेद पाडे छे ते साधु नहीं बीजा गच्छमां जाय ते साधु नहीं (आत्मीयगच्छ) पोताना गच्छनी पुष्टी करनेवालो नरक में जाय इत्यादि भेदपाड़नेवाले गुरुमहाराज की तथा हम लोगों की निंदारूप अनेक आक्षेप कुटिलता से छपवायें हैं और उसवख्त शास्त्रसंमत खरतरगच्छ की समाचारी करने के लिये गुरु महाराज की प्राज्ञा का भंग करने से हर्षमुनिजी वगैरः पर गुरु महाराज श्रीमोहनलालजी कुपित होने से हर्षमुनिजी विगेरः सर्व सूरतगाम में त्रिशंकुकी तरह आचरण करते होगे इसी लिये हर्षमुनिजी ने श्रीमोहनचरित्र के पृष्ठ ४२१ में छपवाया हैं कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034509
Book TitleHarsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharmuni Gani
PublisherBuddhisagarmuni
Publication Year
Total Pages87
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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