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________________ (६६) अर्थात्-(अभिवढियंमि वीसा) यह नियुक्तिकार श्रीभद्रबाहुस्वामीका वचन गृहिज्ञातमात्रा पर्युषण की अपेक्षा से है, यह आपके उक्त उपाध्यायों ने श्रीनियुक्तिकार महाराज के वचन से विरुद्ध प्ररूपणा लिखी हैं सो कौन बुद्धिमान सत्य मानेगा ? क्योंकि नियुक्तिकार श्रीभद्रबाहुस्वामी ने चंद्रवर्ष में ५० वें दिन और अभिवर्द्धित वर्ष में जैनटिप्पने के अनुसार २० वें दिन गृहिज्ञात पर्युषण लिखे हैं, गृहिज्ञातमात्रा नहीं । देखिये नियुक्ति का पाठ । यथा __ इत्थय अणभिग्गहियं । २० वीसतिरायं ५० सवीसइमासं ॥ तेण परमभिग्गहियं । गिहिणायं कत्तिमोजाव ॥ १॥ असिवाइ कारणेहिं, अहवा वासं ण सुट्ठ आरद्धं ॥ अभिवढियमि २० वीसा, इयरेसु २० सवीसइ १ मासो ॥ २॥ अर्थ-यहाँ पर अशिवादि कारणों से श्रावण वदी ५ मी आदि पर्वदिनों में अनभिग्रहीत [ अनिश्चित ] याने गृहिअज्ञात पर्युषण किये जाते हैं सो अभिवर्द्धितवर्ष में आषाढ़ चतुर्मासी से २० दिन पर्यंत हैं और चंद्रवर्ष में ५० दिन पर्यत हैं । उक्त दिन बीत जाने के बाद याने अभिवर्द्धित वर्ष में वीसवें दिन श्रावण सुदी ५मी को और चंद्रवर्ष में पचासवें दिन भाद्रपद सुदी ५मीको अभिग्रहीत [निश्चित ] गृहिज्ञात पर्युषणपर्व अवश्य करने का है और उसके बाद यावत् कार्तिक मास पर्यंत याने कार्तिक पूर्णिमा तक साधु उस क्षेत्र में अवश्य स्थिति करके रहे । याने अभिवर्द्धित वर्ष में २० दिने श्रावण सुदी ५मी को गृहिज्ञात पर्युषणपर्व अवश्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat उसके बाद यावत् काय स्थिति करके जात पर्युषणपर्व अव www.umaragyanbhandar.com
SR No.034509
Book TitleHarsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharmuni Gani
PublisherBuddhisagarmuni
Publication Year
Total Pages87
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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