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________________ ( ६५ ) कल्याणक तपस्या पूर्वतिथि चतुर्दशी को करना, और उस अमावास्या तिथि की वृद्धि हो तो उत्तरतिथि दूसरी श्रमावास्या को करना, इस कथन से कोई भी चतुर्दशी या श्रमावास्या वा पूर्णिमा का क्षय हो तो तेरसतिथि में पाक्षिक या चातुर्मासिक प्रतिक्रमणादि कृत्य करने सिद्ध नहीं हो सकते हैं । और चतुर्दशी या अमावास्या वा पूर्णिमा आदि पर्वतिथि की वृद्धि हो तो ६० घड़ी की संपूर्ण स्वाभाविक पहिली पर्वतिथि को पापकृत्यों से विराधना और धर्मकृत्य निषेधना पापभीरु आत्मार्थी नहीं बता सकता है । महाशय वल्लभ विजयजी ! तपगच्छ के श्रावक चतुर्दशी पर्वतिथि को पापकृत्यों से विराधते है और पहिली अमावास्या तिथि में पाक्षिक प्रतिक्रमणादि कृत्य करते हैं तथा पहिली पूर्णिमा में चातुर्मासिक या पाक्षिक प्रतिक्रमण करते हैं, इसी तरह स्वाभाविक पहिले कार्त्तिकमास में ७० दिने चातुर्मासिक प्रतिक्रमणादि कृत्य और स्वाभाविक पहिले भाद्रपद मास में ५० दिने पर्युषण कृत्य करके उपर्युक्त शास्त्रपाठों की आज्ञा के आराधक क्यों नहीं बनते हैं ? अस्तु, आपके उक्त उपाध्यायोंने लिखा है कि यानि हि दिनप्रतिबद्धानि देवपूजामुनिदानाssarयकादि कृत्यानि तानि तु प्रतिदिनंकर्त्तव्यान्येव इत्यादि । याने जो दिन प्रतिबद्ध देवपूजा मुनिदान प्रतिक्रमणादि कृत्य वह प्रतिदिन समय पर अवश्य करने चाहियें, तो आपके उक्त उपाध्यायों ने यह क्यों लिखा है कि- यानि तु भाद्रपदादिमासप्रतिबद्धानि तानि तु www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.034509
Book TitleHarsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharmuni Gani
PublisherBuddhisagarmuni
Publication Year
Total Pages87
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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