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________________ ॐ नमःपरमात्मने । श्रीपर्युषणमीमांसा गर्भित हर्षहृदय दर्पणस्य द्वितीय भागः। अहं नत्वा जिन पार्श्व, पार्श्वयक्ष विभूषितम् । श्रेष्ठ वाणीप्रदां वाणी, स्मरामि हृदये निजे ॥१॥ __ अर्थ-श्री पार्श्व नामक यक्ष से विभूषित और इन्द्रादि देवताओं के पूज्य श्रीपार्श्वप्रभु तीर्थकर को नमस्कार करके उत्तम वाणी प्रदान करनेवाली सरस्वती देवी को अपने हृदय में स्मरण करता हूँ ॥१॥ श्री मोहन चरित्रेथ गच्छ निन्दादि मुदितम् । समीक्षां तस्य कुर्वे शास्त्रपाठ प्रमाणतः ॥२॥ ___ अर्थ-उत्तरार्द्ध श्रीमोहनचरित्र में हर्षमुनि जी ने गच्छ सम्बन्धी अनेक प्रकार की आक्षेप रचना से अर्थतः अपनी झूठी प्रशंसा और दूसरे की व्यर्थं निंदा रमापति पंडित द्वारा लिखवाई है, उसकी समीक्षा शास्त्रप्रमाण द्वारा मैं करता हूँ ॥२॥ __ देखिये उत्तरार्द्ध श्रीमोहनचरित्र के पृष्ठ ४१३ में लिखा है कि गच्छदुराग्रह रहितं सहितं सत्पक्षपातेन । महितं जनता मनुते तं यान्धा नैव रागेण ॥४॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034509
Book TitleHarsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharmuni Gani
PublisherBuddhisagarmuni
Publication Year
Total Pages87
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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