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________________ ( ४८ ) सांवत्सरिके युगे चतुर्विंशत्यधिक पर्वशतं भवतीत्याख्यातं सर्वैरपि तीर्थकृद्भिर्मया चेति । भावार्थ-अब युग के विषे सर्व संख्या से जितने पक्ष होते हैं उनको बताने की इच्छा से सूत्रकार श्रीगणधर महाराज प्रतिवर्ष में पक्षों की संख्या बतलाते हैं । युग में प्रथम चन्द्रसंवत्सर के २४ पक्ष होते हैं, क्योंकि १२ मास का चन्द्रसंवत्सर होता है, एक एक मास में दो दो पत्त होते हैं । उस कारण से सर्व संख्या करके चन्द्रवर्ष में २४ पक्ष होते हैं । पुनः दूसरे चन्द्रसंवत्सर के २४ पक्ष होते हैं और तीसरे अभिवर्द्धित संवत्सर के २६ पक्ष होते हैं, क्योंकि उस अभिवर्द्धित वर्ष के १३ मास होते हैं । चतुर्थ चन्द्रसंवत्सर के २४ पन्न होते हैं, पाँचवें अभिवर्द्धित वर्ष के २६ पन्न होते हैं। इसका कारण हम ऊपर बता चुके हैं कि अभिवर्द्धित वर्ष के १३ मास होते हैं । इसी प्रकार उपर्युक्त पूर्वापर गणित मिलाने से पाँच वर्ष का एक युग होता है। उस युग में १२४ पक्ष होते हैं, ऐसा सब तीर्थकरों ने कहा है और मैं भी कहता हूँ। प्रियबंधु ! उपर्युक्त पाठ के अनुसार चन्द्रवर्ष में १२ मास २४ पन्न संयुक्त और अभिवर्द्धित वर्ष में १३ माम २६ पन्न संयुक्त अभ्युठिया खमाना, यही पक्ष सर्वज्ञ वचनों से संमत है। और भी टुक विचार से देखिये कि आप लोग अधिक मास के २ पानिक प्रतिक्रमण में तीन तीन वार अभ्युठिया एक एक पत्न पन्द्रह पन्द्रह रात्रिदिन का अपने मुख से उच्चारण पूर्वक खमाकर गुरु आदि ८४ लक्ष जीवायोनियों के जीवों को खमाते हैं और आशातना तथा पापादि का मिथ्या दुष्कृत देते हैं। अब आप ही अपने मन से विचारिये कि आपने अधिकमास में : पातिक प्रतिक्रमण किये । उन दोनों पत्नों का ? मास हुआ और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034509
Book TitleHarsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharmuni Gani
PublisherBuddhisagarmuni
Publication Year
Total Pages87
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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