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________________ ( ४२ ) मास बीतने पर गृहिज्ञात पर्युषण करे, शेष ७० दिन चन्द्रसंवत्सर की पर्युषणा से पूर्ववत् रहते हैं । परन्तु चन्द्रसंवत्सर संबंधी ७० दिन के समवायांग सूत्रवाक्य को अभिवर्द्धित वर्ष में बतला कर शास्त्रकारों की कही हुई अभिवर्द्धित वर्ष संबंधी ५० दिने पर्युषणा को उल्लंघन करने के लिये १०० दिन के स्थान में ७० दिन की झूठी कल्पना करनी तथा ८० दिन के स्थान में ५० दिन की असत्य कल्पना करके यावत् दूसरे भाद्रपद अधिक मास में ८० दिने पर्युषण प्रतिपादन करना यह शास्त्रविरुद्ध उत्सूत्रप्ररूपणा का कदाग्रहमार्ग सर्वथा अनुचित है । महाशय वल्लभविजयजी ! आपके उक्त उपाध्यायों ने लिखा है कि- “दिनगणनायां त्वऽधिकमासः कालचूलेत्यऽविवक्षणात् इत्यादि" - अर्थात् दिनों की गिनती में तो अधिक मास कालचुला याने काल पुरुष के शिर पर चूड़ामणि रत्न समान अधिक मास उसके दिनों को गिनती में नहीं लेने से १०० दिन के ७० दिन हो जाते हैं और ८० दिन के ५० दिन कर लेते हैं । १०० दिन की वा ८० दिनकी बात भी कहाँ रहती है । इत्यादि आपके उक्त उपाध्यायजी ने हुकम जारी किया है सो कौन से सूत्र के कौन से दफे मुजिब किया है ? और उक्त हुकम के अनुसार १०० दिने दूसरे कार्त्तिक अधिकमास में चतुर्मासी कृत्य गिनती में किस तरह मानते हो ? तथा ८० दिने दूसरे भाद्रपद अधिकमास में पर्युषणकृत्य भी गिनती में कैसे माने जायगे ? क्योंकि उक्त अधिक मासों के दिनों को तो आप गिनती में मानते नहीं है, फिर आपके उक्त उपाध्यायजी ने पर्युषणा भाद्रपद मास प्रतिबद्धा इत्यादि लिखकर (अज्ज कालगेण सालवाहणो भणियो भद्दवयंजुराण पंचमीए पज्जोसवणा इत्यादि) कल्पचूर्णि तथा निशीथचूर्णि का पाठ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034509
Book TitleHarsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharmuni Gani
PublisherBuddhisagarmuni
Publication Year
Total Pages87
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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