SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३२ ) श्रीजिनबल्लभसूरिजी महाराजकृत श्रीसंघपट्टक नामक ग्रंथ की श्रीजिनपतिसूरिजी महाराजकृत बृहत्टीका में श्लोक का प्रमाण है कि— वृद्धौ लोकदिशा नभस्य नभसोः सत्यां तोक्तं दिनं पञ्चाशं परिहृत्य ही शुचिभवात् पश्चाच्चर्तुमासकात् । तत्राशीतितमे कथं विदधते मूढ़ा महं वार्षिकं कुग्राहाद् विगणय्य जैनवचसो बाधां मुनिव्यंसकाः ॥ १ ॥ भावार्थ - लौकिक टिप्पने के अनुसार श्रावण अथवा भाद्र पद की वृद्धि होने पर सिद्धांतों में कही हुई आषाढ़ चतुर्मासी से आरम्भ करके पचास दिने पर्युषण पर्व की मर्यादा को त्याग के अपने कदाग्रह से जैन वचनों में बाधा न विचार कर मुनियों में धूर्त लिंगधारी चैत्यवासी मूढ़ लोग ८० दिने वार्षिक पर्युषण पर्व क्यों करते हैं ? श्रीपर्युषण कल्पसूत्र समाचारी में वृद्ध श्रीदेवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणजी महाराज ने लिखा है कि तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे वासाणं सविसईराए मासे विइकंते वासावासं पज्जोसवेइ ॥ १ ॥ से केणणं भंते एवं वुच्चइ समणे भगवं महावीरे वासाणं सविसईराए मासे विइक्कंते वासावासं पज्जोसवेइ जउणं पाएणं आगारीणं आगाराई, कुड़ियाई, उक्कंपियाई, छन्नाई, लित्ताइं, घट्टाई, मट्ठाई, संधूपियाई, खाउदगाई, खायनिद्धमणाई, अप्पणो अट्टाए, कड़ाई, परिभु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034509
Book TitleHarsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharmuni Gani
PublisherBuddhisagarmuni
Publication Year
Total Pages87
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy