SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २१ ) और तपगच्छ के श्रीकुलमंडनसूरिजी ने अपनी रची हुई श्रीकल्पावचूरि में लिखा है कि___ गृहिज्ञाता यस्यां तु सांवत्सरिकाऽतिचारालोचनं १ लुंचनं २ पर्युषणायां कल्पसूत्रकथनं ३ चैत्यपरिपाटी ४ अष्टमं ५ सांवत्सरिक प्रतिक्रमण च क्रियते ६ यया च व्रतपर्यायवर्षाणि ७ गण्यते । भावार्थ-अभिवर्द्धितवर्ष में जैनटिप्पने के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा से २० रात्रि वीत जाने पर श्रावण शुक्ल ५ मी को गृहिज्ञात पर्युषण करें जिसमें सांवत्सरिक अतिचार का आलोचन १ केशलुंचन २ कल्पसूत्र कथन ३ चैत्यपरिपाटी ४ अष्टमतप ५ सांवत्सरिक प्रतिक्रमण ६ किया जाता है तथा (यया) जीस गृहिज्ञात पर्युषण से दीक्षापर्यायवर्षों को गिनते हैं ७ और तीन चंद्रसंवत्सरों में २० रात्रि सहित १ मास वीतजाने पर भाद्रपद शुक्ल ५ को गृहिज्ञात सांवत्सरिक कृत्ययुक्त पर्युषण करें उपर्युक्त पर्युषणपर्व करने की रीति वर्तमान काल में जैनटिप्पने के प्रभाव से लौकिक टिप्पने के अनुसार अभिवाद्धतवर्ष में ५० दिने करने की हैं और चंद्रसंवत्सर में भी ५० दिने करने की हैं ८० दिने नहीं लीजिये श्रीतपगच्छ के श्रीकुलमंडनसूरिजी महाराज विरचित श्रीकल्पावचूरि का पाठ । यथा सा चंद्रवर्षे नभस्य शुक्लपंचम्यां कालकसूर्यादे शाच्चतुर्थ्यामपि जनप्रकटा कार्या यत्पुनरभिवद्धित वर्षेदिनविंशत्या पर्युषितव्य मित्युच्यते तत्सिद्धान्त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034509
Book TitleHarsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharmuni Gani
PublisherBuddhisagarmuni
Publication Year
Total Pages87
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy